बूँद ओस की हो या धूप खिली ||
निकला हो दिनकर, या छाया हो जलज |
स्वछंद नभ हो , या बारिश की फुहार ||
निकल पड़ते है , हम राष्ट्रनिर्माता |
शिक्षा की बुनियाद के निर्माण में ||
वास्तविक राष्ट्र तो है , गाँव के खलिहान में |
इन खलिहानों के नौनिहालों के , भविष्य को संवारने के लिए ||
चल पड़े हम अपने कर्तव्यपथ पर |,
निकल पड़े हम घर से विद्यालय पथ पर ||
घर से विद्यालय की राह, आसान हो कठिन |
मार्ग पक्का हो या कच्चा या जटिल ||
चल पड़े हम अपने कर्तव्यपथ पर |,
निकल पड़े हम घर से विद्यालय पथ पर ||
दीपक पुण्डीर
रामपुर, उत्तर प्रदेश