ग़म के अंधेरों से घबराकर
थक कर कहीं बैठ ना जाना,
नदी की धारा की तरह बहते जाना है,
दुख रूपी धूप से घबराकर
सुख की छाया तले
पथिक तू कहीं बैठ ना जाना!
खुद को सूरज सदृश्य बना
स्वयं रोशन हो
और जग को रोशन बना!
क्योंकि राह संघर्ष की जो चलता है,
वही संसार को बदलता है
जिसने रातों से जंग जीती हो
सूरज बनकर वही निकलता है
तुझे तो सूरज बनकर निकलते जाना
दुख से मत घबराना पथिक
तुझे तो संघर्ष की राह पर चलते जाना
नदी की धारा की तरह बहते जाना है,
एक मिट्टी का दिया भी
रात भर अंधेरों से लड़ता है
तू तो खुदा का दिया है
तू किस बात से डरता है
तुझे तो दीपक सदृश्य जलते जाना
नदी की धारा की तरह बहते जाना है,
संघर्षों की राह पर पथिक थक मत जाना
नदी की धारा की तरह बहते जाना है,
तुझे तो बस चलते जाना
गम की अंधेरी रात में
दिल को ना बेकरार करो
सुबह जरूर आएगी
सुबह का इंतजार कर
जगा कर मन में आशाओं की किरण
तुझे पथिक चलते जाना
नदी की धारा की तरह बहते जाना है,
संघर्षों से मत घबराना पथिक
तुझे तो बस चलते जाना!
नदी की धारा की तरह बहते जाना है,
प्रिया पाण्डेय ‘अनन्या’
उत्तरपाडा, प०बंगाल