मेरा बचपन पली-बढ़ी जिस आंगन में मैं,
वह आंगन बड़ा सुहाना था।
मां तेरा प्यार भरा वह आंचल बड़ा सुहाना था।
प्यार लुटाया मुझ पर ऐसे, बयां नहीं मैं कर पाऊं।
तुझ बिन जीने की मैं मां, कल्पना भी ना कर पाऊं ।
गीले में खुद सोकर सूखे में मुझे सुलाया था।
खुद चाहे भूखी रहे पर मुझे जरूर खिलाया था ।
याद मुझे आता है वह बचपन सुहाना आज भी।
पापा आपकी गोद और वह चॉकलेट देने का अंदाज भी ।
जब मैं रूठा करती थी और आप मनाया करते थे ।
कभी- कभी तो मेरी हंसी के लिए मम्मी को भी डांटा करते थे।
कहां गई वह मेरे शरारत? कहां गया वह मेरा बचपन ?
आपका हाथ पकड़कर चलना सच... वह मंजर बड़ा सुहाना था ।
मां तेरा प्यार भरा वह आंचल बड़ा सुहाना था।
हर गम से मुझे बचाया है। हर खुशी से मुझे सजाया है ।
फिर खुद से दूर भेज कर मां..... यह कैसा फर्ज निभाया है।
हाथ पकड़कर चलना सिखाया, फिर मेरा हाथ किसी को क्यों थमाया ?
आपकी गोद में आकर छुपने का मंजर बड़ा लुभावना था।
मां तेरा प्यार भरा वह आंचल बड़ा सुहाना था।।
सुनीता आर्य
मेरठ, उत्तर प्रदेश