कागजमल के आँसू

सृजन
0


कागजमल जी अपने घर में

बैठे आंसू बहा रहे थे।

अपने जीवन की हालत पर

बार बार वे पछता रहे थे।।

मैंने पूछा कागजमल जी

क्यों ऐसा यह हाल बनाया।

बोले नये जमाने में तुम

सबने मुझको  बहुत सताया।।

मैंने तुमको डॉक्टर मास्टर

और न जाने क्या क्या बनाया।

लोगों ने मुझ से पढ़ लिख कर

दुनिया में है नाम कमाया।।

काम निकल जाने पर मैं

कचरे में फेंक दिया जाता हूँ।

पैरों से कुचला  जाता हूँ और

जिन्दा जला दिया जाता हूँ।।

मेरी सबसे यही है विनती

इतना न करो मेरा अपमान।

मैंने सबका मान बढ़ाया

मुझको दो थोड़ा सम्मान।।

मुझे कबाड़ी को देदो तो

फिर से कागज बन जाऊँगा।

                            कॉपी और किताबें बन कर

                     फिर से तुम्हारे काम आऊंगा।।

अगर इस तरह तुम सब मिलकर

मुझे नष्ट करते जाओगे।

कागज नया बनाने को फिर

वृक्ष मित्र को कटवाओगे।।

 

जमीला खातून (सेवा निवृत्त प्रधानाध्यापिका)

झांसी,  उत्तर प्रदेश

  

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!