पुस्तकालय की पुस्तकें भी , बिछायें है नैना पसार
विद्यालय की नई बेंचों , को भी है इन्तेजार |
कब आओगे बच्चों तुम, अब बहुत हो गया इन्तेजार
दिन बीते और महीने बीते , अब बीत गया आधा साल
सुनी पड़ी है कक्षाएं , करती है इन्तेजार ||
श्यामपट्ट की श्यामल को , शिक्षक के चौक का इन्तेजार |
श्यामलता को श्वेत वर्ण में , होने का है इन्तेजार ||
बसंत ऋतु भी बीत गई , अब आ गई है बरसात |
उपवन में लगाये पौधों में भी , अब आ गई पुष्पों की बहार ||
सुनी पड़ी है कक्षाएं , करती है इन्तेजार |
ईश वंदना से शुरू होती थी , जब विद्यालय का हर एक वार ||
उन वारों को भी है , अब तुम्हारा इन्तेजार |
चहकती थी कक्षाएं , तुम्हरी वाणी से थी गुलजार ||
उन कक्षा – कक्षों में , सुना सा सनाटा ने है पांव पसार |
सुनी पड़ी है कक्षाएं , करती है इन्तेजार ||
दीपक पुण्डीर ( राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षक )
उच्च प्राथमिक विद्यालय ढक्का हाजीनगर