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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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शनिवार, 23 जनवरी 2021

सुनी पड़ी है कक्षाएं

 सुनी पड़ी है कक्षाएं , करती है इन्तेजार |

पुस्तकालय की पुस्तकें भी , बिछायें है नैना पसार

विद्यालय की नई बेंचों , को भी है इन्तेजार |

कब आओगे बच्चों तुम, अब बहुत हो गया इन्तेजार 

दिन बीते और महीने बीते , अब बीत गया आधा साल

सुनी पड़ी है कक्षाएं , करती है इन्तेजार ||

श्यामपट्ट की श्यामल को , शिक्षक के चौक का इन्तेजार |

श्यामलता को श्वेत वर्ण में , होने का है इन्तेजार ||

बसंत ऋतु भी बीत गई , अब आ गई है बरसात |

उपवन में लगाये पौधों में भी , अब आ गई पुष्पों की बहार ||

सुनी पड़ी है कक्षाएं , करती है इन्तेजार |

ईश वंदना से शुरू होती थी , जब विद्यालय का हर एक वार ||

उन वारों को भी है , अब तुम्हारा इन्तेजार |

चहकती थी कक्षाएं , तुम्हरी वाणी से थी गुलजार ||

उन कक्षा – कक्षों में , सुना सा सनाटा ने है पांव पसार |

सुनी पड़ी है कक्षाएं , करती है इन्तेजार ||

 

दीपक पुण्डीर (  राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षक )

उच्च प्राथमिक विद्यालय ढक्का हाजीनगर

 

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