मैं भी बन गया कवि हूं, सुंदर हो गई छवि हूं।
काव्य लिखता हूं, गीत, गज़लें लिखता हूं।।
मां भारती की आरती, भावों से उतारता हूं।
सुंदर सुंदर गीतों से चरणों को पखारता हूं।।
सुंदरता का चितेरा हूं, छवियों का डेरा हूं।
प्रेम के पाग में, भाव चित्रों को डुबोता हूं।।
भाव और अनुभव को एक रूप देता हूं।
दर्द सिलने का एक नायाब दवा देता हूं।।
तरह तरह भावो को काव्यो में समेटता हूं।
यथार्थ को आदर्श में बदलने की कोशिश है।।
डॉ०कन्हैया लाल गुप्त किशन
देवरिया, उत्तर प्रदेश