एक बुलबुला

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बुलबुला  हूँ , बरसात  की  बुंदों  में  भींग  रहा हूँ 

कभी  जल  रहा  हूँ , ताप  का  भाप  बनकर .....

कभी  साबुन  की  चाशनी  से  उकेर  रहा  स्वयं  को,

कभी  सर्द  की  तपन  में , उबल  रहा  हूँ ...

 

कभी  एक  छोटी  सी  फूँक  से , वृहद  हो रहा ...

कभी  शुन्य आकार  को ,साकार  कर  रहा ....

कभी  नरम  नरम  देह  का  साथ  पाकर  ,

अस्तित्व  को अपने , मिट्टी  कर रहा  ......

 

किसी  की  होंठो  की मुस्कान  बना  हूँ ,

किसी  की तालियों  में आकर  समाया  हूँ ,

कभी  गुड़गुड़  करके खिलखिलाता  हुआ ,

कुछ  पल  ही सही, खुशी  देने  आया  हूँ  !!

 

 कृष्णा  गुजराती 

वाराणसी, उत्तर प्रदेश 
 

 

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