देश भक्ति

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 एक दिवस में उतर जाए देशभक्ति वह खुमार नहीं

झंडा फहरा कर मन जाए ऐसा  यह त्यौहार नहीं।

निज राष्ट्र की सुरक्षा हेतु, यदि करते हो कुछ काम,

परम धर्म है तुम्हारा देश पर कोई उपकार नहीं।


देख दुर्दशा वतन की अब नेताओं पर ऐतबार नहीं।

जनप्रतिनिधि बन देश की सेवा कोई कारोबार नहीं

डर जाएगा  गीदड़ भभकी  से  दुश्मन मुल्कों की ,

दुर्बल और मौन रहे अब ऐसा अपना चौकीदार नहीं।

 

शांतिदूत   हैं हम अपनी नीति से अब भी इनकार नहीं।

लेकिन 1 इंच भी पीछे हटना हमको अब स्वीकार नहीं

कान खोल कर सुन ले सब कहता है मेरा भारत अब,

समझो  भाषा को उसमें ही उत्तर देने से प्रतिकार नही।

 

नए भारत का यह  नया है तेवर कोई हुंकार नहीं।

निजविकास हेतु सक्षम किसी मदद का इंतजार नहीं।

वोकल फॉर लोक, बन सीख लिया है हमने जीना,

विदेशी शिक्षा दीक्षा और संसाधन ही मेरे इस्तकबाल नहीं।

 

 

प्रज्ञा  पाण्डेय

वापी, गुजरात 

 

 

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