चित काशी भैयो

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 तेरे घाट घाट का पावन चित्रण

 चित्र पटल पर सजा हुआ है,

 निर्मल देवनदी भागीरथी का जल

 अब भी देह में मंझा  हुआ है।

  भरत जनों के, ओ महानगर पवित्र तू

  कितना अतित यूं देख चुका है,

  आदम,आर्य,मलेच्छों  को देखा

  तेरे आगे  काल भी झुका हैं ।

 निर्मल गंगा के पावन छंद गुनगुनाता

 कुमाऊं हिमालय अखंड संस्कृति सहकर भी,

 संपूर्ण  भरतखंड जनों के हृदय में बसता

 चाहे कुछ मीलों, में सिमटा रहकर भी ।

  क्या काल में तेरा बुरा किया ?

  तू कालजयी शांति सुमन प्रदाता है,

  सुनहरी रेत पर गूंजे  शंख तेरे

  प्रार्थनाएं सूर्य संग  पवन गाता है।

 तू गंगा -जमुनी तहजीब का पर्याय

 हिंदयी  साहित्य का भी जन्मदाता है,

 लहराते खलियानों  में कृषकों का गीत

 तू ही भारतवर्ष का अन्नदाता है।

  रमते जोगी आंगन में तेरे,ध्यान चित

  उदासो  से पूछते,    कै तेरे हुयौ,

  शांत भागीरथी जल स्पर्शकर राही कहे

  मन मथुरा  रे,    चित काशी भैयो, ।।

 सुरेंद्र सिंह रावत

अजमेर, राजस्थान 


 

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