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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

माँ


 गोद में बच्चों को ले जब थक के सो जाती है मां ।

तब कहीं जाकर के आखिर थोड़ा सुख पाती है मां ।।

अपने दुख में भी हमेशा पीड़ा अपनी भूल कर

कब जरूरत क्या मेरे बच्चों को इतना सोच कर।

  हम तो मीठी नींद सोते है और लोरिया गाती है मां।

गोद में बच्चों को लेकर जब थक के सो जाती है मां।।

घर से जब प्रदेश जाता है कोई लखते जिगर।

 आंख नम दिल में है गम राह भी जाती सिहर ।

फिर भी  हंसकर भेजने को दर पर आ जाती है मां ।

गोद में बच्चों को लेकर जब थक कर सो जाती है मां ।।

चाहे हम खुशियों में मां को भूल जाएं दोस्तों।

  उसकी कुर्बानी हमें ना याद आए दोस्तों।

  पर मुसीबत सर पर आ जाए तो याद आती है मां ।

गोद में बच्चों को लेकर जब थक कर सो जाती है मां।।

 मरते मरते भी दुआ जीने को दे जाती है मां ।

लौट कर वापस सफर से जब भी घर आते हैं हम।

 हर परेशानी में जब मां से लिपट जाते हैं हम।

 ममता का आंचल पसारे सर को सहलाती है मां ।

 गोद में बच्चों को लेकर जब थक के सो जाती है मां।।

 

                                                                           -कविता कुसुमाकर

 

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