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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

ये कैसा मकाम है

                         


रोशनी आप के  घर में गुलाम है

वर्ना अँधेरे में तो सारी आवाम है

 

बड़ा जोर है जिन्दगी का शहर में

पास जाके देखिए,सब नाकाम है

 

काम एक भी नहीं आती वक़्त पे

नहीं तो गिनाने को तन्त्र तमाम है

 

सवालों ने जब से लफ्ज़ खो दिए

कोर्ट- कचहरी सब को आराम है

 

सियासत से कोई उम्मीद ना कर

मेरे साथ तेरा भी  बुरा अंजाम है

 

अमावस में चाँद की चाह है तुम्हें

ये कैसा दर है, ये कैसा मकाम है

 

सलिल सरोज

 

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