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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

आम्रपाली की पराजय

 . छठी शताब्दी ईसा पूर्व भारतीय इतिहास काल का निर्णायक क्षण  था, जब भारत वर्ष में बहुत बौद्ध और जैन नामक नवीन धर्मों का उदय हुआ।  महात्मा बुद्ध ने चेतना की जो अलख जगाई  उसमें संपूर्ण भारत रंग गया,  यही कारण था कि यह  `बौद्ध धर्म´ अधिक लोकप्रिय हुआ।  इसी सदी में एक महान घटना घटित हुई जब.जो  कभी महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को अपना तीव्र  शत्रु मारने वाली वैशाली गणतंत्र की नगरवधू `आम्रपाली´ ने संसार के सर्वोत्तम सुखों का त्याग कर बौद्ध मत को स्वीकार कर लिया और महा नारी होने का आदर्श प्रस्तुत किया,। यह त्याग का आदर्श आज भी भारतीय नारी के हृदय में बसता है...........

चीख उठी वैशाली नगर वधू यूँ,

तुच्छ भिक्षु यह कौन है ?

पाखंड का ज्ञान लिए बैठा

तकता मुर्ख सा मौन है।

 क्या तूने सुख को जाना है?

 न नृत्य मेरा देखा होगा।

 गर्व से बोली नृत्यांगना श्रेष्ठ,

 मेरे सुख का क्या लेखा होगा।

रे मूढ़  सन्यासी सुन तो,

 व्यर्थ ज्ञान क्यों बाटता  है?

 सुख सागर का न रसवादन किया,

  मेरी बात को काटता है।

 आनंद हो क्रोधित बोल उठा,

शान्तं पापं ओ देवी नारी। 

 क्या बकती हो व्यर्थ ही,

 धिक्कारेगी तुमको दुनिया सारी।

 क्या नहीं जानती गौतम को,

 जिसने  `जीन´  पर विजय पाई।

 रहस्य जान प्राणीचक्र.मोह का,

 चहुओर ज्ञान लहर ज्योति जगाई।

 ने समझो ऐ,  देवी तुम,

 इन्हें हाड-मांस की देह। 

 सूत चीवर के  धारक को,

 मन दुविधा की बात कह,।

 चौक उठी आम्रपाली शीघ्र ही,

 यह तो शाक्य पति गौतम है।

  हाय रे क्या बोली में भी,

 इन बिना तो तम है।

 गिर पड़ी चरणों में आम्रवती 

 प्रभुवर मुझको इक भिक्षा दो।

 मांगे स्वयं वैभव की देवी,

 जग मुक्ति की शिक्षा दो।

 मुस्काए मंद महासन्यासी गौतम भी,

 क्या देवी तुम करती हो ?

 अरे राजराजेश्वरी होकर भी तुम,

विलाप व्यर्थ क्यों  करती हो ?

आशा नयनो  से उठी देवी,

 उपसंपदा पाने का आह्वान करा। 

 त्यागे  महारत्नों के आभरणों को,

 मात्रेक सूत चीवर वस्त्र धरा।

 चल पड़ी वह. भरत-स्वामिनी,

 तथागत बुद्ध के पथ पर,।

 बुद्ध.धम्म. संघ  स्वीकार लिया,

 अमर हुई इतिहास रथ पर।।

 

सुरेंद्र सिंह रावत  वर्ष

महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय

अजमेर, राजस्थान

 

 

 

 


 

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