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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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सोमवार, 9 नवंबर 2020

धरा और नारी


 हैं त्याग और धैर्य की पराकाष्ठा दोनों,

जुल्म- सितम पर सहे कब तक.... ??

अनादि काल से दोहन किये गये हैं दोनों,

क्षुब्ध हैं सहन करते - करते, प्रतिकार ना करे कब तक??

माना कि हैं चाहतें अनंत दोनों से,

उम्मीदों के बोझ तले रहे कब तक??

हैं न्यौछावर करने को अमूल्य संपदा,

पर स्वार्थ की पूर्ति करे कब तक?

असहाय, अबला, निर्बल समझा है सभी ने,

है अवसर उनको मिथ्या साबित करने का अब ।

नासमझ! तू मृग तृष्णा मैं है कि चलता रहेगा यूँ ही सब कुछ,

जब स्वयम् काली रूप हो जाए, त्राहिमाम करेंगे सब जब - तब।

कर पश्चाताप, सम्मान कर दोनों की, सहेज धरोहर,

बचा खुद को भस्म होने से कयामत तक!

हैं दोनों त्याग और धैर्य की पराकाष्ठा,

जुल्म- सितम पर सहे कब तक.... ??

 

-कुमार भास्कर

 

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