जाति धर्म की विद्वेष भावना
परस्पर वैमनस्यता का दुराभाव
जला डाले पटाखों संग मिलकर
नव पथ के अनुगामी बन जाएं।।
आओ ऐसा दीपोत्सव मनाएं ।
फुलझडियाँ की मानिंद खुशियाँ बिखेरे
हम अनार के सदृश अनंत उमंगें उकेरे
नव आभा, नव विभा को सदा संजोकर
अंतर्तम की नेह गंगा अविरल बहाए ।।
आओ ऐसा दीपोत्सव मनाएं ।
गति, धृति, कृति देख मानव की
और भाल पर स्वेद कणों के मोती
साम्राज्ञी रजनी को, दीपों से सजाकर
उषा महावर को हम आज लगाएं ।।
आओ ऐसा दीपोत्सव मनाएं ।
जिस घर, दर पर दिखें अँधेरा
दीपमाला से अवलोकित कर जाएं
आकांक्षाएं दमनित जिनकी गरीबी में
उन चेहरों की हम मुस्कान लौटाएं ।।
आओ ऐसा दीपोत्सव मनाएं।
सिसकती मानवता विहसे फिर से
कार्य सब कुछ ऐसा कर जाए
अदम्य साहस की प्रेरणा भरकर
समाज में जाग्रति की मशाल जलाएं।।
आओ ऐसा दीपोत्सव मनाएं।
हो चारों ओर खुशियों का बसेरा
दुख की काली बदरी हट जाएं
साहस का दीप,तेल पराक्रम का
आशाओं की बाती हम जलाएं।।
आओ ऐसा दीपोत्सव मनाएं।
-अलका शर्मा स०अ०