समय परिवर्तित हुआ और वर्तमान परिदृश्य में नारियों की आर्थिक, मानसिक और सामाजिक रूप से समृद्ध और सशक्त हुई । अपने जीवन से सम्बंधित निर्णय लेने में स्वतंत्र बनी। कुछ सीमा रेखाओं को पार करके, बाधाओं को पीछे छोड़ कर जल,थल, अन्तरिक्ष में ऊँची छलांग लगाकर नये कीर्तिमान स्थापित करने में लगी हुई हैं। पुरुषों के स्वामित्व वाले क्षेत्रों में झंडे गाड रही हैं। एवरेस्ट फतह कर अपने कदमों के निशान छोड़ रही हैं। यह सब देखकर प्रतीत हो रहा है कि स्त्रियाँ अपने स्वर्णिम समय में जी रही हैं। परंतु बहुत ही खेद का विषय है कि नारी के पथोत्थान के साथ ही उसके प्रति दुराभावों की भी बाढ सी आ गई है। समाज में नारियों के प्रति बढते अपराधों ने एक प्रश्नचिन्ह खडा कर दिया है कि हमारा समाज पतन के किस राह पर चल पडा है।
थॉयसन रॉयटर्स फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के खिलाफ बढते अपराधों के कारण भारत प्रथम स्थान पर पहुँच गया है। कन्या भ्रूण हत्या, यौन शोषण, मानव तस्करी के कारण भारत को सम्पूर्ण विश्व में शर्मिंदगी का सामना करना पड रहा है। निर्भया कांड होअथवा हैदराबाद की दुखद घटना, हाथरस की घटना हो अथवा बुलंदशहर की शर्मनाक घटना। प्रत्येक स्थिति मानव समाज के पतन और महिलाओं की भयावह स्थिति को
इंगित करती है। क्या इस सभ्य समाज में महिलाएं किसी न किसी रूप में प्रताड़ित होती रहेंगी?आखिर हम कब तक सिर्फ कैंडल मार्च निकालकर आगे बढते रहेंगे?आखिर क्यों हर इस प्रकार की करतूतें सिर्फ और सिर्फ राजनीति का हिस्सा बनकर रह जाती रहेंगी?वोटबैंक की खातिर राजनीतिक पार्टियां ऐसे मुद्दों में कूद पडती हैं और कुछ दिनों की उठापटक के पश्चात एक तूफान से पहले की शांति सी छा जाती है और फिर कुछ समय पश्चात एक नई इसी प्रकार की घटना सोशल मीडिया, समाचारपत्रों, न्यूज चैनलों की सुर्खियां बनी होती हैं। नारी अस्मिता और सुरक्षा का प्रश्न जस का तस बना रहता है। युवतियों पर एसिड अटैक की घटनाओं से भी भारतीय समाज शर्मसार होता रहा है। इन घटनाओं से निपटने के लिए भारतीय नेतृत्व में इच्छा शक्ति तो जगी है परंतु विडम्बना यह है कि पुरूष वर्चस्व और सामंती मनस्थिति के कारण अपराध में कमी नहीं हो पा रही है।
इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि महिलाएं कभीशर्म तो कभी पारिवारिक प्रतिष्ठा के कारण खुलकर सामने नहीं आ पाती, दूसरे वे अपने अधिकारों के लिए जागरूक भी नहीं है। घरेलू हिंसा हो अथवा दुराचार, सरकार ने कठोर नियम बनाए हैं। वे इस बात से भी अंजान है कि जीरो एफआईआर के तहत कहीं से भी रिपोर्ट दर्ज करा सकती हैं।उनकी शिकायत संबंधित थाने तक पहुंचा दी जाती है। थप्पड़ मारना, थूकना, अपमानजनक भाषा का प्रयोग करना आईपीसी की धारा323 के तहत कानूनन अपराध हैं। गहरी चोट लगे तो आईपीसी की धारा498, हत्या में 307और रेप केस में धारा 375 के तहत संगीन अपराध की श्रेणी में रखे गए हैं। जिसमें आजीवन कारावास से लेकर फांसी की सजा का प्रावधान भी है।महिलाओं को अपने प्रति होने वाले अपराध के लिए अधिक दृढता के साथ सामने आना होगा। नारेबाजी, कर्फ्यू, धरना प्रदर्शन, सोशल साइट्स पर अपना विरोध जताने, कमेंट्स करने और संबंधित पोस्ट शेयर करने से ही यह हासिल नहीं होगा अपितु सुरक्षित यातायात के साधन, प्रत्येक गली मोहल्लों में रोशनी, कोर्ट में त्वरित न्याय इत्यादि उपायों को भी सरकार को करना होगा।
सबसे बडा उत्तरदायित्व आज परिवार का बन गया है कि वह अपनी संतति में नैतिक मूल्यों का अभिदान करें। लडका हो अथवा लडकी दोनों को समय देकर अच्छे संस्कार देकर एक जिम्मेदार नागरिक बनाए। आज की युवा पीढ़ी अपनों के पास बैठने की अपेक्षा सोशल साइट्स पर अपना समय लगा रहे हैं।जहाँ पर अच्छी जानकारी के साथ ही गलत जानकारियों की भरमार है। सरकार को चाहिए कि इस प्रकार की साइट्स को प्रतिबंधित करें। जिससे युवा पीढ़ी का मस्तिष्क इस प्रकार की गलत बातों से बचा सके। लडकों की संलिप्तता महिलाओं के प्रति अपराध में न होकर उनके प्रति सम्मान की दृष्टि का निर्माण करने में हो।
-अलका शर्मा स०अ०
''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" ये वाक्य आज के युग का नहीं अपितु हमारे वेदों में लिखा हुआ है। प्राचीन समय से ही नारियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। पूजा करने का अर्थ ये नहीं है कि उन्हें घर में बिठाके पूजा जाता है वरन् उसका अर्थ व्यापक है कि नारी को हर रूप में अर्थात् माँ, बहन, बेटी आदि के रूप में में सम्मान दिया जाता है। स्त्री और पुरुष दोनों साथ मिलकर कार्य करते हैं एक दूसरे का सम्मान करते हैं। नारियाँ पहले से ही सशक्त थी. हैं और रहेगी। विपरीत परिस्थितयों के कारण समय परिवर्तित होता गया और नारियों का दायरा सीमित होता गया चला गया लेकिन समस्या तब हुई जब उनका उपहास और तिरस्कार किया उन्हें नीचा दिखाया जाने लगा। उनके अधिकार खत्म होने लगें तब नारियों को अपना अस्तित्व और वजूद बचाने के लिए इस दोहरी मानसिकता वाले पुरुषवादी समाज में अपना स्थान फिरसे स्थापित करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। हर क्षेत्र में स्त्री अपने आप को सावित कर चुकी है कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ नारियों की पहुँच ना हो। उसने हर जगह अपने आप को साबित किया है के वह किसी से कम नहीं है।
स्त्री और पुरुष दोनों एक समान हैं भगवान ने दोनों को समान बनाकर भेजा है शरीर की बनावट में थोड़ा फर्क होने से दोनों अलग-अलग नहीं हो सकते। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।एक के बिना दूसरे का कोई वजूद नहीं हैं। प्रकृति ने दोनों को इस प्रकार बनाया है कि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। जब प्रकृति ने ही दोनों को समान बनाया है तो फिर हम एक को बड़ा और दूसरे को छोटा कैसे कह सकता हैं। एक के बिना दूसरे का वजूद खतरे में पड़ जायेगा। इसलिए दोनों में समानता का भाव रहना चाहिए । एक दूसरे को नीचा दिखाने का नहीं बल्कि सम्मान का भाव मन में होना चाहिए। उनकी भावनाओं का सम्मान करें और आगे बढ़ने में सहायता करें। अगर हम सबके मन में एक दूसरे के सम्मान के भाव होंगे तो हमारा समाज आगे बढ़ेगा उन्नति करेगा। जब तक नारियों के सम्मान के भाव सभी के मन में नहीं जागेंगे तब तक समाज में इसी तरह दुराचार और भेदभाव होते रहेंगे। इसलिए स्त्रियों का सम्मान खुद भी करें और अपने बच्चों और आस-पास के लोगों को भी सिखाए। इसे से नारी सशक्तिकरण का संकल्प पूर्ण होगा।
- नीलम कुमारी