आप खुद से ही अपनी हालत पर नज़र रखिए
मुक़दमा किया है तो अदालत पर नज़र रखिए
जिसे चुना है आपने, आपका दुश्मन न हो जाए
दिन-रात उसकी बढ़ती ताकत पर नज़र रखिए
जो गुज़र जाएँगे वो कभी पर वापस नहीं आएँगे
जितनी भी मिली है हर मोहलत पर नज़र रखिए
चाँद को चाहने से चाँद नहीं मिल जाया करते हैं
किसी को चाहने से पहले चाहत पर नज़र रखिए
पता नहीं चलता कब अर्श से फर्श पे ले आती है
चाहे जैसी भी हों ,अपनी आदत पर नज़र रखिए
-सलिल सरोज
नई दिल्ली