बिटिया थी दुलारी

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बिटिया थी दुलारी 

अपने माँ बाबा की

बहना थी प्यारी

अपने भाई बहना की

पर लगी नज़र ऐसी

जकड़ लिया अपने

पंजों में दानवों ने

कर के हरण किया

दुष्कर्म कर कर के

तार तार मासूमियत

और इज़्ज़त मेरी

इतने पर भी न भरा

मन तोड़ दी गर्दन की

हड्डी काट दी जुबान

छोड़ यूँ अधमरा भाग

गए अधर्मी  वो

दानव सारे

छोड़ तड़पने और मरने को

इस निसहाय  बेटी को

कई दिन हस्पताल में रहने

पर चली चाल ले जाने को

दिल्ली और एक ही दिन में

हो गई खत्म कहानी मेरी

अन्याय पर अन्याय ऐसा

मौत को भी न मिला सम्मान

न साथ अपने परिजनों का

बस जला दिया रातों रातों

तड़पती रही माँ

बिलखते रहे पिता

छटपटाती रही बहन

गुहार लगाता रहा भाई

पर सुनी न सदा किसी ने

पहले दुष्कर्म फिर रहस्यमयी मौत और यूँ मनमानी कर

बिना किसी को बताए जला देना

जात पात और मजहब की राजनीति का आईना

है जिसने खड़े किए कितने

सवाल ताकतवर दरिंदो,सत्ता, प्रशासन, कानून जिसने रचा खेल ये सारा एक मासूम बेटी

के साथ जिसका कसूर भर इतना था कि

वो गरीब थी ,

क्या गरीब  की इज़्ज़त नही होती है

क्या अपराध का मापदंड भी छोटा बड़ा होता है

क्या गरीब को सज़ा

अमीर को संरक्षण

यही क्या एक बिटिया की नियति है

पूछती  चीख चीख कर हर वी बेटी जो आये दिन होती शिकार इस घिनौने दुष्कर्म का

और पूरा सिस्टम लग जाता फिर उसकी लिपा पोती पर

ये विडंबना नहीं तो और क्या है ??

कौन दिखाए आईना

जात पात, मजहब, राजनीति ,सत्ता, कानून

के इन  मुट्ठी भर ठेकेदारों को

ताकि हो सकें सुरक्षित बेटियां हमारी

.

- मीनाक्षी सुकुमारन

                                                                                                                                          नोएडा

 

 

 

 

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