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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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सोमवार, 9 नवंबर 2020

प्रेम स्नेह श्रद्धा

 प्रेम स्नेह श्रद्धा हर वाणी पर मुखरित होते देखा जिसको,

 हर जिह्वा ने रस पान किया हर पल जिसका,

है कुछ शब्द टंकारते,झंकारते विहलते,

प्रेम,स्नेह,श्रद्धा यूँ अपना नाम पुकारते,

प्रेम जो सर्वश्रेष्ठता के शिखर पर है आया,

मगर फिर ना कोई अपना प्रत्यक्ष रूप दिखाया,

छिपा रहकर भी जो है हर ह्रदय पर छाया,

हाय। ये क्या, कैसा शब्द मस्तिष्क में आया,

भावों की पूर्णता, प्रबलता मे,

किन्हीं द्विआत्माओं का हो जब एकाकार,

समझा जाए तो तब ही हो प्रेम का साकार,

लेकिन जब किसी आचार-व्यवहार से हो मन प्रसन्न,

स्वयांश को उसमें देखता हुआ आकृष्टता पाये भिन्न।

और उसमें प्रतिबिम्बित आकर्षणों को देख पाता।

तभी वह स्नेह यह शब्द है कहलाता।

श्रद्धा जो अध्यात्मिकता का देता आगार,

देता आदर पूर्णता में समर्पित उदगार,

संपूर्ण समर्पण में हो जब शून्यता का आधार,

ये ही है श्रद्धा शब्द का रूप अपार।।

 

- सीमा रानी गौड

 

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