आशाएँ

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आशाओं की धाराओं पर चलता है हर कोई ।

 इसमें है ज्वार भाटा जानता है हर कोई।

मगर मानता है कोई कोई।।

 उफनती लहरों से क्यों होता है मन प्रसन्न।

 क्यों होता है हृदय में स्पंदन।

 पतनित लहरों में क्यों करते हैं नेत्र- क्रन्दन।

ये ही है समस्त मानवता का स्पंदन - क्रन्दन।

 हृदय से निकलता हुआ उत्थान पतन। 

यह क्या ?जो एक कदम डगमगा जाए,

हृदय से लगी ठेस तो भावनाएं ठहर जाएं ।

यही भावों का संगम है आशा,

जिसकी पूर्णता को हर किसी का मन है प्यासा।

मगर कोई विरल ही समझ पाता है इसकी भाषा।

आशा का बंधन कहते हैं पार करा देता है बड़े से बड़ा सागर।

ये वही तो है परिणाम जब, गतिविधियां होती हैं उजागर।

आशा है क्या ?एक एहसास है,

पलायन करती सी एक मुस्कुराहट है, 

हर मस्तिष्क पटल पर बजती एक आहट है,

कभी स्वास तो कभी निस्वास होती एक छटपटाहट है।।

परिश्रम के पथ को ले जाती है आशा,

उमंगो का जीवन संजोती है आशा,

तेरे मेरे सपने पूर्ण कराती है,

उल्लास और निराशा की बहन है आशा।।

 

-सीमा रानी गौड़

 

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