नारी हूँ मजबूर नही मै,
दुनिया को ये दिखला दूँगी,
मुझसे ही अस्तित्व मनुज का,
न समझ सका तो समझा दूँगी।
चुन तिनका-तिनका नीड बनाया,
ढाल बनी जब उठा बवंडर,
जीवन भर के अथक श्रम का
कभी दमन हुआ तो समझा दूँगी।।
अबला मान झुकाया सबने,
सहनशक्ति को परखा क्षण-क्षण,
स्वयं के बांधे सब बन्धन तोडूं,
कभी ठान लिया तो समझा दूँगी।
मानवता पर भीड़ पड़ी तो,
दुर्गा का स्वरूप बनाया,
मानव की दानववृति का,
जो नमन हुआ तो समझा दूँगी।
पुरुष अहं की सन्तुष्टि को,
अग्निपरीक्षा अब ना दूँगी,
निष्कलंक,निष्पाप चरित्र पर,
कभी प्रश्न उठा तो समझा दूँगी।
मैंही तो हूँ पन्ना धाय,
राष्ट्रहित पर ममता भी त्यागी,
बलिदान की पराकाष्ठा हूँ मैं,
कभी वक़्त पड़ा तो समझा दूँगी।
-उमा