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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

अपनी बात

दशहरा निकट रहा है | बुराई पर अच्छाई की विजय | बहुत चर्चा करते हैं हम ..अच्छाई की, बुराई की | लेकिन क्या केवल चर्चा ही पर्याप्त  है ? हमें अपने अन्दर की बुराइयों को खोजकर क्या उन पर विजय प्राप्त करने का प्रयास नही करना चाहिए ? सामान्यता हम ऐसा नही करते | सदैव दूसरों की ही बुराइयाँ खोजते रहते हैं | रावण की बुराइयाँ तो खैर सबकों दिखती हैं , कुछ लोग तो श्री राम में भी बुराईयाँ खोज लेते हैं | बहुत बुरी प्रवृत्ति है बुराईयों की खोज | इससे कुछ नही प्राप्त होता सिवाय कलह के |

उपयुक्त है कि हम स्वयं के अवगुणों को देखें और उन्हें दूर करने का प्रयास करें | हमारे आसपास कहीं बुराई है तो हममें हिम्मत होनी चाहिए कि हम उसके विरूद्ध बोल सके , आवाज़ उठा सके | बुराइयों को सहना भी बहुत बड़ी बुराई है | श्रीराम का चरित्र हमें यही आदर्श सिखाता है | उन्होंने राजमुकुट त्याग दिया, राजसी वस्त्र त्याग दिए लेकिन अपने अस्त्र-शस्त्र नही त्यागे | बुराई दूर करने के यही आवश्यक था | श्री राम नारी के विरूद्ध की गयी बुराई को दूर करने के लिए किष्किन्धा  और श्रीलंका की  सत्ता पलटते हैं | लेकिन हमारा आचरण अपने पूर्वजों के आचरण से सर्वथा विपरीत होता जा रहा है | नारी वर्तमान समाज के लिए केवल आकृषित करने वाला शरीर मात्र होकर रह गयी है | चित्रपट में सदैव नारी को भोग्या के रूप में दर्शाया जाने लगा है | और इससे भी बड़ी बुराई तो यह कि नई पीढ़ी इस प्रकार दर्शायी जा रही इन नारियों को ही समाज की नायिका मानने लगी है |

समाज को पुन: सही दिशा देने की आवश्यकता है | नयी पीढ़ी के मन में ऐसे महापुरुषों और महानारियों के आदर्श भरने होंगें कि कि वो अच्छे और बुरे का भेद समझ सके | अपने देश और समाज को प्रगति के पथ पर ले जा सके | एक ऐसे समाज की स्थापना कर सके जो सर्वत्र अच्छाइयों से भरा हो | जहाँ किसी भी प्रकार की बुराइयों के लिए कोई स्थान हों |

विजय दशमी और महर्षि वाल्मिकी जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ |

-जय कुमार

 

 

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