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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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सोमवार, 10 अगस्त 2020

किशोरावस्था में मोबाइल : लाभ, हानि और सावधानी



    किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें बच्चें में शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक परिवर्तन होते हैं। कुछ विद्वानों ने10 से 19 वर्ष की आयु को किशोरावस्था माना है तो कुछ ने 12से18 वर्ष की अवस्था को। इस अवस्था में अभिभावकों शिक्षकों की बच्चों के प्रति जिम्मेदारी बढ जाती है क्योंकि स्टेनले होल के अनुसार ." किशोरावस्था बडे संघर्ष, तूफान एवं विरोध की अवस्था है।" इस अवस्था में बच्चों का मस्तिष्क बहुत ही जिज्ञासु होता है। वे हर नवीन चीजों को जानना चाहते हैं। उसके लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हैं।
    आधुनिक युग वैज्ञानिक युग है, नवीन आविष्कारों का युग। जिसमें सबसे क्रांतिकारी आविष्कार मोबाइल है। इससे जीवनशैली को आमूल चूल परिवर्तित कर दिया है।छोटे से छोटे बच्चे से लेकर सब मोबाइल पर लगे हुए दिखाई पडते हैं। किशोरों को तो इसने कुछ ज्यादा ही अपनी चपेट में ले लिया है। अपनी समस्त जिज्ञासाओं के समाधान के लिए वे इंटरनेट पर खोजबीन करते है। यदि इसका प्रयोग केवल सकारात्मक जानकारी के लिए किया जाए तो यह एक बहुत ही अच्छा प्लेटफार्म है। ओनलाईन पढाई के लिए लोकडाउन मेंयह बहुत ही अच्छा माध्यम बन गया है। सभी संस्थान अपने स्तर पर पढाई करा रहे हैं।और बच्चें पढ रहे हैं। जहाँ आज समस्त कोचिंग संस्थान बंद है तो बच्चें इंटरनेट पर स्टडी संबंधी जानकारी प्राप्त कर रहे हैं।
 
विभिन्न क्षेत्रों में निकलने वाले रिक्त पदों की जानकारी प्राप्त हो जाती है। बैकिंग सम्बन्धी कार्य वे मिनटों में कर लेते हैं।जिससे उनका समय नष्ट नहीं होता है। स्टडीज में कोई भी दिक्कत हो तो उसका हल मिल जाता है।मोटिवेशनल स्पीच सुनकर अपने आप को ऊर्जावान महसूस करते हैं। यदि दूर रहकर पढ़ाई कर रहे हैं तो वीडियो कोल के जरिए अपनों से जुड पाते हैं।
    किशोरावस्था में मोबाइल से हानियों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। बच्चें अपना अधिकांश समय यूट्यूब पर गाने सुनने, फिल्में देखने , टिकटोक पर नष्ट कर रहे हैं। अनावश्यक बातें करने, व्हाट्सएप और फेसबुक पर चैटिंग करने में अपना बहुमूल्य समय बर्बाद कर रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप उनके ज्ञान का स्तर गिर रहा है। कुछ किशोर गलत लोगों के संपर्क में आ जाते हैं और गलत राह पर चल देते हैं। कुछ गेम्स में पडकर अपनी जान तक गंवा रहे है। स्मार्टफोन का अधिक प्रयोग आँखों को नुक्सान पहुंचा रहा है। मोबाइल के रेडिएशन से घातक बीमारियां सामने आ रही हैं।
     मोबाइल पर सेल्फी लेने की होड ने सैकड़ों जिंदगियां छीन ली है। ऐसी परिस्थितियों में अभिभावकों, दोस्तों और शिक्षकों का उत्तरदायित्व बढ जाता है कि वे अपने किशोर बच्चों पर निगरानी रखें। उन्हें यह अहसास न कराएं कि उन पर निगरानी रखी जा रही हैं उनसे बातें करें, उनकी बातों को ध्यान से सुने ।इससे वे अपनी समस्याओं को भी सामने रख पाएंगे और गलत कदम उठाने से बच सकेंगे। किसी भी चीज की अति बुरी होती है। मोबाइल का अत्यधिक प्रयोग भी दूरियां ही उत्पन्न कर रहा हैं।कबीरदास जी ने कहा है... "अति का भला न बोलना, अति की भली न धूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।। अतः किशोरावस्था संवेदनशील होने के कारण इनके साथबहुत ही संयम से पेश आने की आवश्यकता होती हैं। उनके मोबाइल प्रयोग पर ध्यान देना चाहिए कि वह कितना समय और क्या देख रहे हैं?

अलका शर्मा,
क०उ०प्रा०वि०भूरा
 कैराना, शामली

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