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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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सोमवार, 6 जुलाई 2020

चलना ही जीवन है



रे पथिक! हिम्मत ना हार, चलना ही जीवन है।
पथरीली पगडंडी,   कंटक शूल भरी डगर
ज्वालामुखी जीवन, चहुंओर रक्तिम लपट
 प्रतिपल सुलगती आकांक्षाएं, दमनित इच्छाएँ।

       रे पथिक! हिम्मत ना हार, चलना ही जीवन है।
      गहन रात्रि, व्योम की ओर अपलक अवलोकन
      आशा की प्रत्यंचा पर, मन करता लक्ष्यसंधान
      उर सन्निपात, मीन अश्रु सदृश व्याकुल अभिसरण

रे पथिक! हिम्मत ना हार, चलना ही जीवन है।
वियोग व्यथित मन,व्यग्र व्यथित उद्वेलित तन
 विछोह घाव अति गहन,कुम्भलाई लता सघन
दृण पीत पात धरा पर गिरते आस सदा उन्नयन।

       रे पथिक! हिम्मत ना हार, चलना ही जीवन है।
      विन्ध्याचल सा जीवन अटल, स्वयं की ही आहुति
      हृदय में आच्छादित सन्नाटा, कष्टों की परिणति
      गति अवरोधक विजन, तथ्यों की आत्मस्वीकृति।

रे पथिक हिम्मत न हार क्योंकि चलना ही जीवन है
चट्टानों का मर्दन करती,कल कल सरिता का बहना
अवरोधो से टकराव भले हो,सागर से सुखद मिलन
लोभ मोद मद का तर्जन,ईश्वर में समाहित तनमन

      रे पथिक!हिम्मत ना हार, चलना ही जीवन है।
       हौसलें बुलंद कर श्रम से असंभव भी होतासम्भव
      अंबर भी झुकता है गर उड़ने की उत्कंठा करलेमन
      अग्नि मे तपकर ही कुंदन अनमोल हो जाता रत्न।।

               रे पथिक! हिम्मत ना हार, चलना ही जीवन है...............

                     अलका शर्मा,
                    क०उ०प्रा०वि०भूरा
                     कैराना, शामली



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