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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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सोमवार, 6 जुलाई 2020

अनुलोम-विलोम प्राणायाम


अनुलोम सीधा और विलोम का अर्थ है- उल्टा। यहां पर सीधा का अर्थ है-नासिका का दाहिना छिद्र और उल्टा का अर्थ है-नाक का बायां छिद्र। अनुलोम विलोम प्राणायाम में नासिका के बायीं छिद्र से सांस खींचते हैं, तो दाएं नाक के छिद्र से सांस बाहर निकालते है। इसी तरह यदि नाक के दाएं छिद्र से सांस खींचते है, तो नाक के बाये छिद्र से सांस को बाहर निकालते है। अनुलोम विलोम प्राणायाम को कुछ योगीगण 'नाड़ीशोधक प्राणायाम' भी कहते है।
    अनुलोम विलोम प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शोधन होता है यानी वे स्वच्छ व निरोग बनी रहती है। अनुलोम विलोम प्राणायाम के नियमित अभ्यास करने से वृद्धावस्था में भी गठिया, जोड़ों का दर्द व सूजन आदि शिकायतें नहीं होतीं। अपनी सुविधानुसार पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन में बैठ जाएं। दाहिने हाथ के अंगूठे से नासिका के दाएं छिद्र को बंद कर लें और नासिका के बाएं छिद्र से 4 तक की गिनती में सांस को भरे और फिर बायीं नासिका को अंगूठे के बगल वाली दो अंगुलियों से बंद कर दें। 
    तत्पश्चात दाहिनी नासिका से अंगूठे को हटा दें और दायीं नासिका से सांस को बाहर निकालें। अब दायीं नासिका से ही सांस को 4 की गिनती तक भरे और दायीं नाक को बंद करके बायीं नासिका खोलकर सांस को 8 की गिनती में बाहर निकालें। अनुलोम विलोम प्राणायाम को 5 से 15 मिनट तक कर सकते है। अनलोम विलोम के नियमित अभ्यास करने से फेफड़े शक्तिशाली होते है। अनलोम विलोम के नियमित अभ्यास करने से सर्दी, जुकाम व दमा की शिकायतों से काफी हद तक बचाव होता है। अनलोम विलोम प्राणायाम के नियमित अभ्यास करने से हृदय बलवान होता है। कमजोर और एनीमिया से पीड़ित रोगी अनुलोम विलोम प्राणायाम के दौरान सांस भरने और सांस निकालने (रेचक) की गिनती को क्रमश: चार-चार ही रखें। अर्थात चार गिनती में सांस का भरना तो चार गिनती में ही सांस को बाहर निकालना है। अनुलोम विलोम प्राणायाम मे बाया स्वर चन्द्र स्वर और दाहिने स्वर को
सूर्य स्वर है | अनलोम विलोम प्राणायाम को स्वस्थ रोगी धीरे-धीरे यथाशक्ति पूरक-रेचक की संख्या बढ़ा सकते है।
  कुछ लोग समयाभाव के कारण सांस भरने और सांस निकालने का अनुपात 1:2 नहीं रखते। वे बहुत तेजी से और जल्दी-जल्दी सांस भरते और निकालते है। इससे वातावरण में व्याप्त धूल, धुआं, जीवाणु और वायरस, सांस नली में पहुंचकर अनेक प्रकार के संक्रमण को पैदा कर सकते है। अनुलोम विलोम प्राणायाम के नियमित अभ्यास सांस की गति इतनी सहज होनी चाहिए कि करते समय स्वयं को भी आवाज न सुनायी पड़े।
                                    
   पुष्पेन्द्र गोस्वामी

पूर्व मा०वि० अजीजपुर

   वि०क्षे०- ऊन


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