अपनी बात

ध्यान की यह परम्परा या कह लीजिये कि संस्कार आज भी चला आ रहा है | लेकिन अधिसंख्यक लोग इससे विमुख हो गये हैं | जिसका परिणाम यह हुआ कि आजकल लोग छोटी-छोटी बातों को लेकर अवसाद-ग्रस्त हो जाते हैं | योग की उपेक्षा करके हमने अपना शारीरिक स्वास्थ्य ख़राब कर डाला और ध्यान का त्याग करके मानसिक स्वास्थ्य | हमारे मन बहुत दुर्बल हो चुके हैं | अभी हाल ही में एक युवक ने आत्महत्या करके ईश्वर के दिए अमूल्य जीवन को ठुकरा दिया | कुछ वर्ष पूर्व इसी युवक ने अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित एक मेधा परीक्षा में सातवाँ स्थान प्राप्त किया था वो भी दस लाख प्रतिभागियों में | युवक का मस्तिष्क बहुत तीव्र था परन्तु मन दुर्बल ही रहा गया था | व्यवसाय में तनिक सी विपरीत परिस्थितियाँ आई और धैर्य ज़वाब दे गया ! आज आवश्यकता इस बात की है कि मानसिक स्वास्थ्य जैसी महत्वपूर्ण विषयवस्तु को केवल शिक्षक-प्रशिक्षण जैसे कुछ पाठ्यक्रमों में नहीं अपितु स्नातक स्तर पर सभी पाठ्यक्रमों का अनिवार्य करना चाहिए तथा योग और ध्यान गतिविधियों को प्रारम्भिक स्तर से ही शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाना चाहिए |
-जय कुमार