हे ईश्वर !

सृजन

  ईश्वर !

  मुरझाए इस वन उपवन में,

  नवपल्लव विकसित कर दो |

  शिथिल निरीह इस तन में,

  नवजीवन ज्योति भर दो |

  तमस मिटाकर अपनी धरा का,

  क्षितिज तलक प्रकाश पुंज भर द़ो।।



  हे ईश्वर !

  ज्येष्ठ दुपहरी से तपते हृदय में,

  क्षणिक सुख की छाया कर दो |

  प्रतिपल बढते मृत्यु के आँकड़ों में,

  तनिक किंचित अब विराम कर दो |

  कोई तो बनकर हनुमानजी ,

  अब हिमालय से संजीवनी बूटी ला दो।।



हे ईश्वर !

चहुँ ओर पसरे नीरव सन्नाटे में,

नवरस भरी बाँसुरी तान सुना दो |

दिक् दिशाओं में व्याप्त धुएं में,

सूर्य रश्मि बनकर यह दूर हटा दो |

उत्कंठित श्वांस व्यथित तन में,

क्षणिक द्रुत मेघ मर्दन कर दो।।

हे ईश्वर !

गहन गिरि गुहा से जीवन में

अविरल शीतल गंगा जल भर दो

 प्रत्यावर्तित तमस विषाद में

हर्ष करतल ध्वनि संचार कर दो

कोरोना वायरस दनुज हनन को

प्रत्यंचा बाँध कर संधान कर दो।।



-अलका शर्मा








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