नाम है मेरा भू, वसुंधरा और पृथ्वी,
मैं ही सबकी महान दाता पृथ्वी।।
मैं ही पालती सब जीवों को,
मैं ही सबकी माता पृथ्वी।।
ये सब पर्वत, जंगल, मैदान, पठार
इन सबसे ही मैं बनी हूं पृथ्वी।।
वृक्ष, नदियां, झरने,तालाब
इन्हीं के कारण मैं मुस्कुराती पृथ्वी।।
स्वच्छ हवा और स्वच्छ पानी से ही,
मैं ही सबकी महान दाता पृथ्वी।।
मैं ही पालती सब जीवों को,
मैं ही सबकी माता पृथ्वी।।
ये सब पर्वत, जंगल, मैदान, पठार
इन सबसे ही मैं बनी हूं पृथ्वी।।
वृक्ष, नदियां, झरने,तालाब
इन्हीं के कारण मैं मुस्कुराती पृथ्वी।।
स्वच्छ हवा और स्वच्छ पानी से ही,
मैं हरी-भरी, लहलहाती पृथ्वी।।
नर, पशु-पक्षी एवं अन्य प्राणी
इनसे ही मैं धरती माता पृथ्वी।।
सब प्राणियों की पालना हेतु,
मैं ही हूं अन्न दाता पृथ्वी।।
जब इनमें से कोई भी आहत होता,
नर, पशु-पक्षी एवं अन्य प्राणी
इनसे ही मैं धरती माता पृथ्वी।।
सब प्राणियों की पालना हेतु,
मैं ही हूं अन्न दाता पृथ्वी।।
जब इनमें से कोई भी आहत होता,
तब मैं ही दुःख भरी माता पृथ्वी।।
लेकिन जब कभी भी जानबूझकर,
तुम मेरे साथ अन्याय करोंगे,
तब मैं ही हूं विकराल रूप पृथ्वी।।
देख ले मानव चारों ओर,
कैसा हाहाकार मचा है..
ये सब तेरे कर्मों का फल है,
फिर भी मैं कितनी सहनशील पृथ्वी।।
सो हे! मानव तू सोच समझ लें,
किसमें तेरा हित है।
क्योंकि मैं ही सर्व हितैषी पृथ्वी।।
कु. प्रिया ( स.अ.)
प्रा.वि. जसाला न.-2
कांधला (शामली)
तब मैं ही हूं विकराल रूप पृथ्वी।।
देख ले मानव चारों ओर,
कैसा हाहाकार मचा है..
ये सब तेरे कर्मों का फल है,
फिर भी मैं कितनी सहनशील पृथ्वी।।
सो हे! मानव तू सोच समझ लें,
किसमें तेरा हित है।
क्योंकि मैं ही सर्व हितैषी पृथ्वी।।
कु. प्रिया ( स.अ.)
प्रा.वि. जसाला न.-2
कांधला (शामली)