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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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शनिवार, 9 मई 2020

हरिद्वार-ऋषिकेश यात्रा




    वर्ष 2007 का अगस्त का महीना था | बारिश का मौसम चल रहा था | एक दिन मित्र मण्डली में  हरिद्वार की चर्चा छिड़ गयी | बस फिर क्या था झट-पट चलने की तैयारी शुरू कर दी सबने | अगले दिन सुबह ही हम सब लोग बस पकड़कर सहारनपुर पहुँचें | फिर वहाँ से रेलगाड़ी द्वारा हमने हरिद्वार का रुख किया | बहुत भीड़-भाड थी शहर में | हम लोग ऑटो पकड़कर सीधे हर की पैडी पर पहुँचे |
बड़ा ही मनोरम दृश्य था | हम लोग गंगा स्नान करने को आतुर थे | झट से सभी ने कपडे उतारे, गंगाजल से आमचन किया और फिर गंगा मैया की गोद में प्रवेश किया | बहुत ही ठण्डा जल था | एक बार को तो सारे शरीर में झनझनाहट सी हुई लेकिन एक दुबकी लगाते ही सारी थकान भी दूर हो गयी | काफी देर तक तक हम शीतल जल में छोटे बच्चों की तरह खेलते रहे |
  हर की पैडी से बाहर आकर हमने खाना खाया और आराम करने के लिए एक थोड़ी सी खाली जगह पर लेट गये | कभी किसी समय स्वयं श्रीहरि विष्णु जी ने जहाँ अपने चरण रखे थे | उसी धरती पर लेटकर असीम सुख की प्राप्ति हुयी |जब हम आराम करके उठे तो दिन का चौथा प्रहर शुरू हो गया था  | किसी ने प्रस्ताव रखा कि रात में यहाँ लेटकर क्या करेंगें ? क्यों न ऋषिकेश चला जाए और फिर वहाँ से रात में महादेव के धाम नीलकंठ की ओर प्रस्थान किया जाए ? सभी को प्रस्ताव बहुत पसन्द आया | हम
तुरन्त ही ऋषिकेश की तरफ चल दिए | हरिद्वार से ऋषिकेश मात्र चौबीस किलोमीटर दूर है |
मान्यता है कि रावण का वध करने के उपरान्त गुरु वशिष्ठ के परामर्श पर श्रीराम यहाँ पर  तपस्या करने के लिए  पधारे थे | यहाँ परबने हुए लक्ष्मण झूले से गंगा को पार करना बड़ा ही रोमांचक है | हरिद्वार की तुलना में यहाँ भीड़-भाड कम ही थी | ऊँचे पर्वतों से गंगा बड़े तीव्र वेग से पृथ्वी पर आती हैं | ऋषिकेशवह स्थान है जहाँ गंगा का भय उत्पन्न करने वाला वेग धीमा पड़ता है | ऋषिकेश में त्रिवेणीघाट बहुत प्रसिद्ध है | कहा जाता है कि यहाँ पर यमुना और सरस्वती की गुप्त धारायें भी यहाँ आकर गंगाजी से मिलती हैं  |
त्रिवेणी घाट से ही गंगाजी दायीं ओर मुड जाती हैं |  यहाँ पर परमार्थ निकेतन और स्वर्गाश्रम भी दर्शनीय स्थल हैं | एक बार फिर मन गंगा-स्नान को आतुर हुआ तो हम लोग पुनः गंगा जी के पवित्र जल में उतर गये | यहाँ पर गंगा की धारा का प्रवाह हरिद्वार की अपेक्षा बहुत तीव्र अनुभव हुआ | यहाँ पर हमने नीलकंठ महादेव का अभिषेक करने के लिए गँगा जल लिया और फिर हमने मणिकूट पर्वत पर चढ़ने की तैयारी की |
अँधेरा हो चुका था | हम लोग अपने -अपने थैले कन्धों पर लादे पहाड़ पर चढ़े जा रहे थे | रास्ते भर में घना अँधेरा था | बस सब लोग एक के पीछे एक चले जा रहे थे लगभग तेईस या चौबीस किमी का सफर होगा | हम बातें करते जा रहे थे कि काश हम लोग दिन में यह चढ़ाई कर रहे होते तो रास्ते के सुन्दर दृश्यों को निहार कर आनन्द लेते | लेकिन रात में तो कुछ भी दिखाई नही दे रहा था |
धीरे-धीरे चलते हुए हम रात्रि के तीसरे प्रहर में हम मन्दिर तक पहुँच गये |समुद्र मन्थन के समय निकले विष का सेवन करने से महादेव का कन्ठ नीला हो गया था | तभी से उन्हें नीलकन्ठ भी कहा जाता है | महादेव का जलाभिषेक करके हमने उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया और फिर वापसी की राह पकड़ी | दोपहर से पहले
ही हम लोग वापस हरिद्वार आ चुके थे | हमारे पाँव ज़रूर थके थे लेकिन मन नही | हम लोगों ने चंडी देवी के दर्शनों की योजना बनायी | यह चढ़ाई भी हमने पैदल ही की | इस बार दिन की अच्छी रोशनी थी | 
इस हरे-भरे पर्वत जो जी भरकर निहारते-निहारते हम कब मन्दिर तक पहुंचे पता ही नही चला | वहाँ पर हमने माता के दर्शन किये | भूख भी बुरी तरह लग चुकी इसलिए हमने वहीँ पर भोजन करना अधिक उपयुक्त समझा |
कुछ देर विश्राम करने के उपरान्त हमने इस पहाड़ी से उतरना शुरू किया | उतरते समय जो दृश्य दिखाई दिए वो भी मनमोहक थे | नीचे पहुँचने के उपरान्त हमने अनुभव किया कि अब हम और अधिक घुमने फिरने की स्थिति में नही हैं | अत: हम लोगों ने वहाँ से ऑटो लेकर रेलवे स्टेशन का रास्ता तय किया | रास्ते भर हम यही चर्चा करते रहे कि काफी कुछ अनदेखा रह गया अभी हरिद्वार में जिसे अगली बार अवश्य देखेंगें | 


-जय कुमार


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