इस परिस्थिति में एक विचार स्वभाविक रूप से मन में उभरता है कि जिस प्रकार अन्तरिक्ष के क्षेत्र में अपने प्रयोगों, अनुसंधानों तथा उपलब्धियों के बूते आज ‘भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन’ का विश्वभर में डंका बज रहा है ऐसा चिकित्सा अनुसन्धान क्षेत्र की संस्था क्यों नही कर पा रही है | कोरोना वायरस से पहले मुझे तो यह भी पता नही था कि कोई इस तरह की संस्था भी भारतवर्ष में है | हो सकता है ऐसा मेरे अल्पज्ञान के कारण हो और आप लोग पहले से ही जानते हो | लेकिन यह भी सर्विदित है कि आज अगर ISRO को देश का बच्चा-बच्चा जानता है तो इसका कारण केवल और केवल वहाँ कार्य करने वाले वैज्ञानिकों और शोधार्थियों के परिश्रम का ही फल है | सही अर्थों में वे लोग तपस्वियों के समान हैं | देश की अन्य सभी केन्द्रीय संस्थाओं को भी स्वयं को उत्कृष्टता के उसी स्तर पर ले जाने की आवश्यकता है जहाँ पर आज ‘भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन’ है | नवसंवत्सर में ऐसी ही आशा करते हैं |
विक्रम संवत २०७७ की हार्दिक शुभकामनाएँ |
-जय कुमार