चारों ओर यह कैसा मंजर , इस दुनिया को दिखलाया |
हाथ मिलाने का वैस्टर्न कल्चर,सारी दुनिया छोड़ रही,
हाथ जोड़कर करें नमस्ते,आज यह दुनिया सीख रही |
दादी नानी की कहानियों में सत्यता की जो बातें थी,
पहली छींक पर छत्रपति,दूरजी पर जयनंदी कहती थी |
खांसने पर मुलैठी को चिंगम जैसे चबाने को देती थी,
आंगन की तुलसीपत्तों का काढ़ा बुखार में पिलाती थी |
किसी भी वायरस से हमारा,दूर दूर तक ना नाता था,
दादीजी ने नीम की कोंपलों को हमको खिलाया था |
नीम के पत्तों के पानी में रगड़ रगड़ नहलाया था,
कीकर की दातुन से दाँतों को मोतियोंसा चमकाया था |
आँगन की माटी में सबकी खूब कबड्डी होती थी,
धूल धूसरित तन को देख कर ताली दे दे हँसते थे |
तन पर माटी को दादा प्राकृतिक चिकित्सा कहते थे,
अस्थियों को मजबूत बनाने की जादुगरी सिखाते थे |
दादाजी क मन के अंदर तब एक लाईबेरी रहती थी,
संग खेतोंपर जाना,नित नई बातें ज्ञान वृद्धि करती थी |
वायरस जैसी बातें तो तब कभी भी नहीं निकलती थी,
उस जीवन शैली में निरोगी काया सदैव ही रहती थी |
खेती गोमूत्र-गोबर से करना मज़ाक उड़ाया जाता था,
वृक्षों-पत्थरों की पूजा को अंधविश्वास बताया जाता था |
जैविक खेती पर सब लौटे,रसायनों से मोह भंग हुआ,
पर्यावरण संरक्षण की खातिर ,हमें प्रकृति से प्रेम हुआ |
छोड़करअपनी संस्कृति हम,पाश्चात्य सभ्यता में रंग रहे,
वही सभ्यता,वैदिक संस्कृति में जीवन मूल्य ढूंढ रही |
शाकाहार भोजन के फायदें ,देखो डॉक्टर बता रहे,
मांसाहार से नाता तोड़ने की,बातें सभी को सिखा रहे |
अपनी समृद्ध संस्कृति से मानव कितना विमुख हुआ,
उपभोक्ता वाद की संस्कृति में जीवन के सुख ढूंढ रहा |
भौतिक सुख में आनंद खोजे ,भागम भाग में जी रहा,
ऋषियों मुनियो के भारत में वाणी ओइम को भूल रहा |
आज भयंकर इस विपदा में, प्रधानमंत्री ने आह्वान किया,
घर में रहकर सुरक्षित रहना, केवल यही तो मांग लिया |
खुद की रक्षा है देश की रक्षा, आज यही तो जान लिया,
हाथ जोड़कर विनती सबसे, देश हित में इसका पालन करें |
-अलका शर्मा