आसमान है भूरा, हवाएं जहर,
भोर की लाली लागे है कहर।
पानी में घुला टीडीएस का लोचा है ,
धरती को बचाने का यह आखिरी मौका है।
वो ओस की बूंद थी,
तूने उसमें तेज़ाब भर दिया।
वो पाकीजा दरियाव था,
तूने उसे बेआब कर दिया।
उसने बांसुरी की इजाज़त दी,
तूने उसका जंगल ही बेजान कर दिया।
उसने रोटी की रहमत दी
तूने उसकी मिट्टी को बेकार कर दिया।
बदलाव तो तू कर नहीं पाया,
अब बदला लेने की बारी है ।
ज्वालामुखी तेरे घर में ही फोड़ने की
प्रकृति की पूरी तैयारी है ।
आज तेरा प्लास्टिक वाला पानी
उसके पीतल पर भारी है ।
तुम्हें पैदा करने वाली ये सृष्टि
आज तुम्हारी नज़रों में बेचारी है।
अस्मत और किस्मत सब
उसके हाथ है ।
तू साथ उसका दे न दे
कुदरत खुद साथ है ।
भूला नहीं होगा तू
तुझे सब याद है ।
बदल आदतें ऐसे की
जैसे तेरी आखिरी फरियाद है ।
जमीन आधी हरी हो
आधी पानी से भरी हो।
जब हवाएं साफ हो जाएंगी
तुम्हारी गलतियां माफ़ हो जाएंगी।।
-कनकलता "कन्नौजिया"
जनपद- श्रावस्ती