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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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बुधवार, 5 फ़रवरी 2020

फिंगरप्रिंट



        अपराध जगत में फिंगरप्रिंट का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि किसी भी एक व्यक्ति का “फिंगरप्रिंट” दूसरे व्यक्ति के “फिंगरप्रिंट” से कभी मेल नहीं खाता, जिससे अपराधियों को पकड़ने में सुविधा रहती है।
       हमारी उंगलियों के “फिंगर प्रिंट” अपने आप में यूनिक होते हैं जो जन्म से लेकर मृत्यु तक कभी नहीं बदलते है। प्रकृति का, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को भिन्न बताने का यह अनोखा तरीका है। इस तथ्य का 2000 वर्ष पूर्व चीन में आविष्कार हुआ था, क्योंकि चीनी राजा महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर अंगूठे का निशान लगाते थे।
       1892 में अंग्रेज वैज्ञानिक 'सर फ्रांसिस गॉल्टन' ने सबसे पहले यह खोज की थी कि दो उंगलियों के निशान एक जैसे नहीं होते तथा 1901 में 'स्कॉटलैंड यार्ड' में अपराधियों को पकड़ने के लिए “फिंगरप्रिंट” विधि का प्रयोग प्रचलित हुआ था। इस पद्धति को विकसित करने में “सर एडवर्ड हेनरी” का  महत्वपूर्ण योगदान है। आजकल पुलिस विभाग द्वारा अपनी सुविधा अनुसार इस विधि में कुछ बदलाव किए गए हैं।
      सर हेनरी' की पद्धति के अनुसार 'फिंगरप्रिंट’ कई पैटर्न जैसे 'लूप्स', ‘सेंट्रल’, पॉकेट लूप्स', डबल लूप्स', 'आरचिस', टेंडेड आरचिस होल' और 'एक्सीडेंटल’ मे बांटे जा सकते है।
      आजकल भारत में व्यापक रूप से प्रचलित 'आधार कार्ड' मुख्य रूप से “फिंगरप्रिंट” पद्धति पर ही आधारित है। आज एक व्यक्ति केवल अपने “फिंगरप्रिंट” का प्रयोग कर अपने बैंक खाते से अपने धन का आहरण कर  सकता है। इसी के साथ आजकल प्रचलित 'स्मार्ट मोबाइल फोन्स’ में “फिंगरप्रिंट सेंसर” उपलब्ध   है इसका उपयोग कर केवल वही व्यक्ति अपना फोन प्रयोग कर सकता है जिसका वह फोन है। इसी के साथ विभिन्न वाहनो में भी “फिंगरप्रिंट सेंसर” की सहायता से केवल अधिकारिक व्यक्ति ही अपने वाहन को ऑपरेट कर सकता है।
नवीन कुमार शर्मा (स.अ.)
बालिका पूर्व माध्यमिक विद्यालय,  टपराना

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