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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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बुधवार, 5 फ़रवरी 2020

मन्थन (फ़रवरी 20)


                  प्रधानपति 

प्रधानपति शब्द सुनते ही यहीं बोध होता है की क्या आज भी पुरुष ही एक महिला को चलाता है, सामाजिक सरोकार में मिटिंग्स मे महिला प्रधान की जगह एक आदमी वो या तो प्रधान प्रतिनिधि होता है या प्रधानपति होता है |
  प्रधान प्रतिनिधि एक महिला या पुरुष कोई भी हो सकता है पर प्रधानपति क्या है क्या प्रधान साहिबा के पति को डिग्री मिल जाती है या उसके पास खुद  का कोई काम नहीं होता आखिर ये अधिकार मिला कैसे, अब तक महिलाओं के हर फैसलों पर पुरुष की रज़ामंदी अनिवार्य हुआ करती थी पर अब तो सरकारी कार्यो, सामाजिक सरोकारो में भी महिला प्रधान का पति होना एक बहुत बड़ा पद हैं ताजुब तो तब ज्यादा होता है जब इसे समाज ने भी स्वीकार कर लिया आये दिन समाचार पत्रों में हम लोग प्रायः इस शब्द से रूबरू होते आ रहे है, जिसे हर    कोई देखता पढ़ता हैं पर कोई सवाल नहीं वैसे सवाल हम कर भी किससे रहे हैं ऐसे समाज से जो अपना नाम भी ना लिख पाने वाले लोगों को देश सम् हालने का टिकट दे देता है, खैर हम  लोगों(आम नागरिक ) का काम हैं रोजी रोटी की व्यवस्था करना अपना और अपने परिवार के लोगों के लिए हम लोग तो उसी में उलझ के रह गए है और हा हमारे समाज मे घूँघट और बुरके के आड़ में भी बहुत सी प्रधान हैं जिनका काम तो छोडो चेहरा भी देखना नसीब नहीं हो पाता है क्या पता  परदे के पीछे कौन हो?? भाई बुर्के शब्द पर कोई फ़साद ना हो इसलिए बुर्के को घुघट पढ़ा जाये, वैसे जब तक प्रधानपत्नी जैसे शब्द पढ़ने को नहीं मिल जाते तब तक प्रधानपति शब्द को मेरे वयक्तिगत स्तर पर स्वीकार करना थोड़ा कठिन है |
                                     
अंकिता मिश्रा
                                    सहायक अध्यापक
                                      जनपद- गोंडा



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