गौरी आती साइकिल चलाती,
सबके मन को कितनी भाती,
पकडकर साइकिल का हैंडिल,
देखो इधर-उधर घुमाती रहती।।
देख गौरी की साइकिल को,
छोटी एंजिल दौडी आती,
बैठ जाती गौरी के पीछे,
हँसती-गाती,खुशी मनाती।।
अपनी साइकिल लाने को,
छोटी एंजिल नखरें दिखातीं,
दादी उसकी प्यार से मनाती,
पर वो बात कोई ना मानती।।
उसकी बुआ ससुराल से आयी,
नखरे एंजिल ने खूब दिखायें,
अब तो उसकी बुआ ने ही,
एंजिल को नयी साइकिल दिलाई।।
अपनी साइकिल देख एंजिल,
कभी इठलाती,कभी इतराती,
कभी बुआ के आलिंगन मे जाती,
खुशी से अब साइकिल चलाती।।
-नीतू रानी(स.अ.)