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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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बुधवार, 1 जनवरी 2020

सराहना दूसरों की… क्या लाभ क्या हानि?
















 जब से मानव जीवन अस्तित्व में आया है वह निरन्तर प्रगति की ओर तो अग्रसर 


















है ही साथ ही वह उन मूल्यों की ओर भी आकर्षित होता आ रहा है जिसको प्राप्त 



















कर लेने पर वह आत्मिक सौंदर्य के साथ ही आत्मसंतुष्टि का बोध कर सके। किसी 



















भी व्यक्ति की सफलता में आस पास के लोगों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है 


















उनके द्वारा की गई सराहना का उस पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।मनुष्य का यह 


















एक स्वाभाविक गुण है कि सराहना सुनकर वह प्रसन्न हो जाता है। 














  सराहना दो प्रकार की होती है एक निःस्वार्थ भाव से की गई सराहना। दूसरी 


















चापलूसी भरी सराहना। जब हम किसी की निःस्वार्थ भाव से सराहना करते है तो वह 

















अच्छी बात है परन्तु स्वार्थ वश अथवा अपना कार्य निकलवाने के लिए की गई 



















सराहना से सामने वाला एक बार तो प्रसन्न हो सकता है परन्तु वास्तविकता से 




















परिचित होने पर खीज सकता है।
      











सच्चे मन से की गई सराहना से दो लाभ होते हैं एक तो वह व्यक्ति स्वयं 















प्रसन्न होता है साथ ही सामने वाले को भी प्रसन्न करता है।कबीर दास जी ने कहा 


















भी है कि
             















ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए
            













औरन को शीतल करें आपहुं शीतल होए।
    
 सराहना की कोई कीमत नहीं होती, मगर यह बहुत कुछ रचती है । यह पाने वाले 
को खुशहाल करती ही है साथ ही देने वाले का भी कुछ घटता नहीं है।यह यादों में 
हमेशा के लिए बस जाती है। यह थके हुए को

आराम, निराश लोगों के लिए रोशनी और उदास के लिए 


















सुनहरी धूप के समान है।जैसे चाँदी की परख कुठारी पर और 




















सोने की परख आग की भट्टी में होती है वैसे ही मनुष्य की 

















परख लोगों द्वारा की गई प्रशंसा से होती है।किसी ने कहा 















है….























 बुद्धिमान व्यक्ति की सराहना उसकी अनुपस्थिति में करनी 




















चाहिए तथा स्त्री की सराहना उसके मुँह पर करनी चाहिए।




















    सराहना से व्यक्ति आत्ममुग्ध भी हो जाता है। वह अपने 


















आप को सर्वश्रेष्ठ मानने लगता हैजो मनुष्य के पतन का 



















कारण बनती है । सराहना की परत के नीचे वह वह अपने 




















अवगुणों को भूल जाता है। जो उसकी तरक्की की राह में 



















बाधक सिद्ध हो सकते है। इसीलिए कबीरदास जी ने कहा 


















है-   










     निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छुवाए।           















     




     बिनु पानी साबुन बिना, निर्मल करेंसुभाय।।












   
मनुष्य को आलोचना करने वाले का शुक्रगुजार होना चाहिए 
























जिससे उसे अपने अवगुणों का पता चलता है और वह उन्हें 



















दूर कर एक प्रभावशाली व्यक्तित्व बनने की ओर अग्रसर होता 


















है।    सराहना यदि सच्ची है तो वह आगे बढ़ने और अधिक 


















जिम्मेदार बनने की ओर पथगामी करती है।अतः व्यक्ति को 



















इस अंतर को पहचान कर ही आगे बढना चाहिए।



अलका शर्मा,
क०उ०प्रा० वि० भूरा,
 कैराना, शामली




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