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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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बुधवार, 1 जनवरी 2020

सराहना दूसरों की… क्या लाभ क्या हानि?


          अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप,
          अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
   उक्त दोहे का अर्थ जीवन के हर कोने तक फैला है, परन्तु इसका संदर्भ सराहना जैसे सकारात्मक क्षेत्र में भी सटीक बैठेगा या नहीं इसे इस प्रकार समझते है-
      छोटा बच्चा जब पहली बार अपने पैरो पर चलने का प्रयास करता है तब उसकी मां अनेक उपनामों व स्नेह भरे शब्दों से उसके प्रयास को सराहती है, बच्चा दुगनी ऊर्जा से अपने लडख़ड़ाते कदमों से चलने का प्रयास करता है।अपने पैरों पर खड़ा होना आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।
सकारात्मक सराहना का इससे उपयुक्त उदारहरण मैंने महसूस नहीं किया ।
    इसी का दूसरा पहलू देखे तो मुझे एक घटना याद आती है कि - नवीन नाम का एक लड़का अपनी प्रतिभाओं के बलबूते शिक्षक द्वारा अति सराहना का शिकार हो गया, और कक्षा के अन्य बच्चों से स्वयं को अलग महसूस करने लगा।

अन्य बच्चों को हेय दृष्टि से देखने लगा उसमे अहम का भाव आ गया, हालांकि शिक्षक का सराहना के पीछे यह उद्देश्य बिल्कुल नहीं था।
एतएव  नीतिशास्त्र के अनुसार सामाजिक संतुलन को बनाए रखने हेतु पुरस्कार एवं दंड दोनों प्रक्रियाओं को समान रूप से प्रयोग में लाने की आवश्यकता है।


                                                                              कनक लता कनौजिया
                                 
प्राथमिक विद्यालय मसजिदिया
                                 
विकास क्षेत्र- इकौना (श्रावस्ती)




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