बस अभी जगा हूँ

सृजन


बस अभी जगा हूँ , सपनो के भवर जाल से,
कदम अभी चले है, जो फॅसे थे मकड़जाल में,
मन की जकड़न ने भी,    अभी अंगड़ाई ली है।
पैरो की बेड़ियों ने भी, अभी पैरो को रिहाई दी है।।

ह्रदय की धड़कन ने भी, तोड़े है अब भय के जाले,
मंजिल मिले ना मिले, अब कदम नही रुकने वाले,
माना राह के काँटो ने, पैरो को कई बार छला है।
ठोकर खाते पैरो ने, खुद को पत्थर सा बुना है।।

सम्मान पाने के लिये, झूठ से समझौते किये थे मैंने,
अब सच्चाई से जीऊँगा, ये वादा खुद से किया है मैंने,


                                              
-नीरज त्यागी

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