मिट्टी और कुम्हार

सृजन

शिष्यगण ध्यान से अपने गुरु जी की बातों को सुन रहे थे | पूरी तरह तल्लीन ..... गुरु पढ़ाने में और शिष्य ग्रहण करने में | कक्षा का वातावरण किसी प्राचीन गुरुकुल की तरह ही दैवीय प्रतीत हो रहा था | कक्षा-कक्ष से बाहर क्या हो रहा है, किसी को कोई खबर नही रहती | प्रोफसर देव जब भी शिक्षण करते हैं, शिष्य ऐसे ही सदैव तन्मय हो जाते हैं |  विचित्र सा नाता जुड़ गया है गुरु शिष्यों का | बहुत प्रेम है गुरु-शिष्यों के बीच |
आज का प्रकरण पूरा हो चुका था | सभी शिष्य एक अद्भुत से आनन्द का अनुभव कर रहे थे | सत्र का कुछ समय अभी भी शेष था और शिष्यगण इसमें भी चाहते थे कि ज्ञान की वर्षा होती ही रहे |
नेहा ने प्रश्न रखा –“सर, सभी लोग कहते हैं, यहाँ तक कि आप भी ... कि शिक्षक कुम्हार की तरह होता है और शिष्य मिट्टी की तरह | जैसा चाहे शिक्षक अपने छात्रों को वैसा ही बना देता है | क्या सच में ऐसा ही है सर ?”
गौतम ने भी प्रश्न को सम्बल दिया –“हाँ सर, कृपया बताइये कि क्या वास्तव में हम भी कुछ महीनों बाद किसी की किस्मत लिखने की क्षमता अर्जित कर लेंगें ? क्या सच में शिक्षक में इतनी क्षमता होती है ?”
प्रोफेसर ने कुछ बोलना चाहा लेकिन बीच में ही हर्ष बोल पड़ा –“सर, आपकी बात तो अलग है | आप तो सच में हमारी किस्मत बदल रहे हैं | लेकिन हम लोग तो कुछ भी नही |”
प्रोफेसर मुस्कुराकर पुन: कुछ बोलने ही वाले थे कि इस बार विवेक ने अपनी शंका उछाल दी –“सर, अगर हम जैसे लोग किस्मत लिखने लगे तो फिर भगवान क्या करेंगें ?” वैसे भी शास्त्रों में तो यही कहा गया है कि व्यक्ति की किस्मत तो भगवान पहले से ही लिखकर रखते हैं |”
इससे पहले कि अब कोई कुछ बोलता, गौतम उठकर खड़ा हो गया | सब समझ गये थे कि अब कुछ बोले तो खैर नही | प्रोफेसर भी जानते थे कि गौतम कक्षा में सदैव अनुशासन बनाकर रखता है यद्यपि वे खुद कभी अपने शिष्यों पर अनुशासन बनाये रखने के लिए कड़ा रुख नही अपनाते |
प्रोफेसर –“देखो ! अगर किस्मत की बात की जाए तो मैं यह तो  नही कहूँगा कि सृष्टि में भगवान की मर्ज़ी नही चलती | लेकिन मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि अगर कोई मनुष्य बड़े परिश्रम और लगन कार्य कर रहा है तो मुझे नही लगता कि भगवान उसे उसके परिश्रम का फल न दे | आखिर उन्हें परमपिता कहा जाता है | वो हमारे प्रति निष्ठुर कैसे हो सकते हैं ?”
“एक शिक्षक को यही तो करना होता कि वो अपने छात्रों को उचित मार्ग दिखाये | ऐसा मार्ग जो सच्चाई और अच्छाई का हो | और जब मनुष्य सच्चाई और अच्छाई के मार्ग पर चलते हुए परिश्रम से कार्य करेगा तो उसकी किस्मत अवश्य चमकेगी |”
सिद्धि बोली –“लेकिन सर, वो कुम्हार और मिट्टी वाली बात |”
प्रोफेसर –“वो भी पूरी तरह सत्य है | और ऐसा भी नही कि ऐसा केवल हमारे यहाँ ही कहा जाता है ‘वाटसन’ ने भी तो कुछ ऐसा ही कहा है |”
हर्ष उछलकर खड़ा हुआ और बोला –“हाँ सर, मुझे याद है ‘वाटसन ने कहा था कि -तुम मुझे बच्चा तो और मैं उसे जो आप चाहें वो बना दूँगा |”
सभी ने एक विशेष शैली में ताली बजायी | जिससे हर्ष झेंप गया |
प्रोफेसर ने कहा –“हर्ष बिल्कुल ठीक कह रहा है |
हर्ष का साहस पुन: बढ़ गया –“सर, मेरे पड़ोस में एक कुम्हार रहता है और मैं रोज़ आते-जाते हुए उसे बर्तन बनाते हुए देखता हूँ |”
प्रोफेसर ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा –“अच्छा अब आज के मेरे सत्र का समय समाप्त हुआ | मिट्टी और कुम्हार की कोई बात शेष रह गयी हो तो कल करेंगें | अब मैं चलता हूँ |”
प्रोफेसर कक्षा से बाहर निकल जाते हैं |
अगले दिन महाविद्यालय में शिक्षा संकाय में एक ऑटो रिक्शा आकर रुकी | उसमें से हर्ष उतरा | सब यह देखकर चकित हुए कि उस रिक्शा से एक व्यक्ति और उतरा फिर दोनों ने मिलकर रिक्शा से एक चाक उतारा और फिर गीली मिट्टी से भरी बाल्टी भी उतारी | सभी ठहाके लगा-लगाकर हँसने लगे | एक बार तो हर्ष झेंप गया | फिर उसने हिम्मत करके कहा –“तुम देखना , देव सर इस मिट्टी और कुम्हार  चाचा से ही कल का प्रकरण आज पूरा करेंगें और हमें समझायेंगें |
सभी हर्ष की नादानी पर हँसे जा रहे थे और गौतम को उसकी नासमझी पर गुस्सा आ रहा था | उसने हर्ष से कहा कि चाक और मिट्टी को परिसर के एक कोने में पेड़ के नीचे रखवाये | फिर सभी को सख्त हिदायत दी कि सभी वहीँ पेड़ के नीचे जाकर बैठे जाएँ और शोर-शराबा बिल्कुल न करें | फिर वह प्रोफेसर देव को सूचित करने स्टाफ रूम में पहुँचा | प्रोफेसर देव उसे देखकर बाहर ही आ गये | गौतम उन्हें लेकर परिसर के उस पेड़ की ओर चल दिया जहाँ पर पूरी कक्षा उपस्थित थी |
रास्ते में प्रोफेसर देव ने गौतम को गुस्सा शान्त करने को कहा और समझाया कि वहाँ पर कोई न तो हर्ष का मजाक उडाये और न ही उस पर गुस्सा करे | ऐसा करेंगें तो कुम्हार चाचा को बुरा लगेगा | गौतम ने सहमति से सिर हिलाया |
प्रोफेसर ने वहाँ पहुँचते ही कुम्हार चाचा को धन्यवाद देते हुए कहा – “आपका बहुत-बहुत उपकार कि आपने यहाँ आना स्वीकार किया | वास्तव में कुछ ऐसी बातें हैं जो आप ही हमारे शिष्यों को समझा सकतें हैं |”
कुम्हार चाचा जो अभी तक सहमे-सहमे से खड़े उपेक्षित अनुभव कर रहे थे ऐसा सुनते ही प्रसन्न हो उठे | उनके चेहरे पर चमक आ गयी | बोले- “मुझे क्या करना है साहब ?”
प्रोफेसर –“वही जो तुम रोज करते हो | बस साथ-साथ हमें सब कुछ समझाते चलना |”
“ठीक है साहब” -ऐसा कहकर कुम्हार चाचा ने अपने चाक को घूमने के लिए तैयार किया और तैयार गीली मिली उस पर चढ़ा दी |
उन्होंने अब चाक को तेज़ी से घुमा दिया और बोले –“देखो बच्चों, अभी हमारे पास ये गीली मिट्टी है और इसकी किस्मत हमारे हाथ में है | अहम जो चाहे इसका बना सकते हैं | हम इसका एक सुन्दर सा घड़ा भी बना सकते हैं जिसमें ठण्डा पानी भरा जायेगा | जो प्यासे की प्यास बुझा सकता हैं | हम चाहे इससे तो हुक्के की चिलम भी बना सकते हैं जो खुद भी सदैव आग में तपती है और इन्सान के फेफड़ों को भी जलाकर बेकार कर देती है |”
फिर उन्होंने मिट्टी से एक घड़ा बनाना शुरू किया | चाक से गीले घड़े को उतार कर उसे बाहर से चोट मारकर और अन्दर से सहारा देकर सुन्दर आकार दिया | सभी शिष्यगण ध्यान से उनकी कारीगरी को देख रहे थे |
जब घड़ा बनकर तैयार हो गया तो प्रोफेसर ने उसकी बहुत प्रशंशा की और पूछा –“क्या यह घड़ा पानी भरने के लिए तैयार है ?”
कुम्हार चाचा –“नही साहब, अभी इसमें पानी भर देंगें तो यह टूट जाएगा | इससे पहले इसे आग में डालकर पकाना होगा | तब जाकर यह तैयार होगा |”
प्रोफेसर ने अपने शिष्यों की तरफ देखा जिन्होंने अभी-अभी कुम्हार के हाथों मिट्टी की किस्मत बदलते देखी | वो बोले –“घड़ा तो बना गया लेकिन यह बात भी ध्यान देने की है कि अगर कुम्हार चाचा घड़े को सुन्दर आकार देने में परिश्रम ने करते तो इसका आकार इतना सुन्दर न होता |”
“इसीलिए कहता हूँ कि शिक्षक बनने के बाद अगर आप लोग भी अपने विद्यार्थियों पर इसी तरह ही परिश्रम करोगे जितना कि कुम्हार चाचा में इस मिट्टी पर किया है तो निश्चित रूप से आप लोग भी उनकी किस्मत को बदलकर रख दोगे |”
सभी शिष्यों के चेहरों पर स्वीकृति के भाव थे |
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