अपनी बात

सृजन


   फिर से नया वर्ष आया है | कुछ उम्मीदों को, कुछ उमंगों का | सृष्टि का यही नियम है | पुराने पत्ते गिरते रहते हैं और नई कोंपलें सृजित होती रहती है | वस्तुत: नव-सृजन के लिए आवश्यक है कि पुरातन का क्षय हो | पुरातन का क्षय नही होगा तो नवसृजन को स्थान नही मिलेगा | कहना अनुचित होगा कि यदि हम अपने मस्तिष्क से पुराने पड़ चुके विचारों को नही निकालेगें तो नये विचार कहाँ उपजेंगें ? समय के साथ-साथ निष्प्रयोज्य और अर्थहीन हो चुके विचारों का त्याग करना ही होगा | हिमगिरि से असंख्य नूतन बूँदे निरन्तर सरिता में समाहित होती रहती है तभी वो सदैव ताजगी से भरपूर रहती है | और जब इन बूँदों से बनकर बहती जलराशि लम्बे मार्ग में मलिन हो जाती है तो फिर मिल जातीं हैं सागर मेंऔर अपना अस्तित्व खो देती हैं | जहाँ फिर से नवीन स्वच्छ जलकण वाष्प के रूप में उड़कर निकल पड़ते हैं अपने नये सफ़र के लिए
अपनी प्रासंगिकता बनाये रखनी है तो हमें भी स्वयं में नवीनता लानी होगी | हम स्वयं नये-नये मार्ग खोजेंगें तभी तो बच्चों का परिचय उन मार्गों से करा पायेंगें | यहाँ यह सावधानी भी बरतने की आवश्यकता है कि नवीन मार्ग ऐसे हो जो हमारे बच्चों, हमारे विद्यार्थियों को उन्नति के मार्ग पर ले जाते हों | कहीं ऐसा हो कि हम केवल अपने और अपने ही मान-सम्मान और पड़-प्रतिष्ठा के मार्ग खोजते रहें | शिक्षक और अभिभावकों के रूप में हमारे लिए हमारे विद्यार्थी और बच्चे हमारे बच्चे हमारी प्राथमिकता पर होने चाहियें | बालिकाएँ तो विशेष रूप से ..
गणतन्त्र दिवस की ढेरों शुभकामनाएँ |
-जय कुमार 

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