अन्तर
प्रोफेसर
देव शिक्षण में व्यस्त थे | शिष्यगण भी ज्ञान रुपी वर्षा में आनन्दित थे | तभी
प्राचार्य जी ने बड़ी प्रसन्न मुद्रा में कक्षा में प्रवेश किया | आते ही उन्होंने
सभी को समाचार सुनाया –“आप सभी लोग जानते हैं प्रत्येक दस वर्ष पश्चात् देश में
जनगणना होती है | हमारे महाविद्यालय के लिए गर्व की बात है कि इस बार इस कार्यक्रम
में उच्चाधिकारियों ने हमारे प्रोफेसर देव का विशेष सहयोग माँगा है |”
प्रोफसर
देव नीरस भाव से बोले –“इसमें माँगना क्या सर ? जो भी ड्यूटी लगायी जायेगी वो तो
करनी हो होती है | जनगणना में ड्यूटी करना सभी सरकारी वेतनभोगियों के लिए
संवैधानिक अनिवार्यता है | पिछली बार की तरह इस बार भी प्रशिक्षण में ही ड्यूटी
लगाई जायेगी और क्या ?”
प्राचार्य
जी ने शीघ्रता से कहा –“अरे नही देव, वो तो जो ड्यूटी लगेगी वो लगेगी ही | इस बार अधिकारियों ने
तुमसे बहुत सारी और भी अपेक्षायें की हैं | तुम अपने सत्र के बाद में कार्यालय में
आना सब समझा दूँगा |”
प्राचार्य
जी कक्षा से जाने लगे तो सब शिक्षार्थी खड़े हो गये | प्राचार्य जी ने उन्हें बठने
का संकेत किया और कक्ष से बाहर चले गये | देव कुछ देर तक उन्हें जाता हुआ देखते
रहे |
“सर, आपके लिए रोजगार का सुनहरा अवसर |” -हर्ष
ने विज्ञापन उद्घोषक के अन्दाज़ में कहा |
गौतम को
छोड़कर सब हसें | उसने अपनी जिज्ञासा के लिए पूछ ही लिया –“सर, आप खुश क्यों नही हैं ?”
प्रोफेसर
ने टालते हुए कहा –“नही ऐसी तो कोई बात नही |” फिर कक्षा के बाद वो सीधे प्राचार्य
जी के कार्यालय में पहुँचे |
कार्यालय
में और भी सहकर्मी पहले से ही बैठे हुए थे | सभी ने प्रोफसर देव को बधाई जी | कुछ
देर तक यही चर्चा चलती रही कि देव साहब के ज्ञान और बुद्धिमत्ता का सभी लोग लोहा
मानते हैं | सभी अधिकारियों की दृष्टि में प्रोफेसर देव बहुत मेहनती और लगनशील हैं
| प्राचार्य जी ने बताया कि जनगणना में सहयोग के लिए लोगों में सकारात्मक भाव
जागृत करने के लिए कुछ विशेष कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं | जैसे कि रेलियाँ
निकालना, मानव-श्रंखला बनाना, रँगोली बनाना और कुछ ऐसे ही और कार्यक्रम | उन्होंने
गर्व से सबको बताया कि उच्चाधिकारी चाहते हैं इन सब कार्यों में हमारे देव साहब
उनकी सहयोग करें , और सहयोग क्या ? वे तो चाहते हैं कि सब कुछ इन्हीं की देखरेख
में हो |
प्रोफेसर
वर्मा जी ने दाद देने के भाव से कहा –“भई वाह देव साहब, आपके तो अब हफ्ते-दो-हफ्ते आनन्द लो |”
कुछ दिनों के लिए कक्षा की चिक-चिक से भी मुक्ति |”
प्राचार्य
जी ने भी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा –“हाँ-हाँ जितने दिन भी लगे, लग जाने दीजिये | जनहित का कार्य है
अधिकारी भी खुश होंगें और हमारे महाविद्यालय का भी मान बढेगा |”
प्रोफसर
देव खिन्न भाव से बोले से बोले –“आप सब अपना मान बढ़ा लो, लेकिन विद्यार्थियों का
क्या ?”
प्राचार्य
जी ने सख्त लहजे में कहा –“अरे ! आप अकेले थोड़े ही होंगें ? और भी शिक्षक और
कर्मचारीगण साथ में जोड़े गये हैं | आप परसों बिना किसी बहानेबाज़ी के इस सम्बन्ध
में होने वाली बैठक भी प्रतिभाग करने के लिए समय से पहुँच जाना |”
प्रोफेसर
देव कुछ बोलना तो चाह रहे थे थे लेकिन बोले नही और कार्यालय से बाहर चले गये |
* * *
सभागार
में जनगणना को लेकर सभी अधिकारीगण अपने-अपने विचार प्रस्तुत कर चुके थे | सारी
कार्ययोजना पर भी विस्तार से चर्चा हो चुकी थी | अब समय था कि सभी आमन्त्रित किये
गये कर्मचारी और अधिकारीगण अपने शंकाओं के विषय में अवगत करायें ताकि उनका निवारण
किया जा सके | कुछ ने आपनी शंकाएँ रखी तो कुछ ने चुप रहने में भी समझदारी समझी |
शिक्षक वर्ग से कोई बोलने को तैयार न था | यद्यपि ऐसा भी नही था | प्रोफेसर देव
अपने साथ अपने प्रिय शिष्य गौतम को सभा में साथ को लेकर आये थे | उन्होंने एक
दृष्टि सभा में अपने पास बठे शिक्षकजनों पर डाली फिर उठ खड़े हुए |
“महोदय, मेरी भी कुछ शंकाएँ हैं | कहने की अनुमति
है ?” -देव शान्त भाव से बोले |
आयुक्त
महोदय को एक अधिकारी ने प्रोफसर देव का परिचय दिया | उन्हें अपनी बात कहने का
संकेत दिया गया |
“महोदय, मैं यहाँ उपस्थित कर्मचारियों और
अधिकारीगणों से कुछ जानकारी चाहता हूँ |” -देव ने कहा |
अभी को
थोडा विस्मय सा हुआ |
आयुक्त
महोदय मुस्कुराकर बोले –“प्रोफेसर साहब, आप जिससे जो भी जानकारी चाहते हैं, शौक से लीजिये | कुछ हमसे पूछना चाहते हैं
तो हमसे भी पूछिए |”
प्रोफेसर
देव ने धन्यवाद दिया और गुप्ता जी को सम्बोधित करते हुए बोले –“ गुप्ता जी, आप बैंक में काम करते हैं | जिन
कार्यदिवसों पर आप इन कार्यक्रमों में व्यस्त रहेंगें तो आपके दैनिक कार्यों का
क्या होगा ?”
एक बार
को तो गुप्ता जी सकपका गये | फिर संयत होकर बोले –“कुछ काम जो बहुत आवश्यक होंगें
उन्हें दूसरे साथी देख लेंगें और जो मुझे ही करने हैं वे मैं इस कार्यक्रम के बाद
थोड़ी सी मेहनत करके निपटा दूँगा |”
इस बार
प्रोफसर देव ने डॉ० जैन से पूछा –“जैन साहब ! आपके मरीज़ ?”
जैन साहब
ने एक बार आयुक्त महोदय को देखा फिर बोले –“कमाल करते प्रोफेसर साहब , क्या मैं
अकेला ही डॉक्टर हूँ | मेरे मरीजों को भी मेरे साथी देख लेंगें | इसके अलावा
मरीजों के पास अन्य विकल्प भी हैं | किसी को कोई हानि नही होगी ”
आयुक्त
महोदय के चेहरे पर अब प्रोफसर देव के प्रति नाराजगी के भाव उभर आये थे |
इस बार
प्रोफसर ने एक ग्राम पंचायत सचिव पर कुछ ऐसे सवाल दाग दिए |
ग्राम
पंचायत सचिव महोदय जी यद्यपि घबराहट का अनुभव कर रहे थे तो भी हिम्मत करके बोले –“इन
पाँच-सात दिनों में मेरा जो कार्य बाधित होगा उसे मैं थोडा-थोडा करके दो-चार दिन
में ख़त्म कर ही दूँगा |
एक
अधिकारी महोदय कुछ बोलना चाह रहे थे लेकिन प्रोफसर रुके नही और उन्होंने एक अपने
ठीक सामने बैठे एक प्रवक्ता से प्रश्न किया –“शर्मा जी, क्या आप इन पाँच-सात दिनों में अपने कार्य
की क्षति की प्रतिपूर्ति कर पायेंगें ?”
शर्मा जी
खड़े तो हुए लेकिन उन्हें समझ नही आ रहा था कि बोलें या फिर चुप रहें ?
तभी
बराबर में बैठे हुए सुनील जी उठ खड़े हुए | वे प्रोफेसर देव को अच्छी तरह जानते थे
| उन्हें ये भी पता था कि प्रोफेसर देव के जिन प्रश्नों को सब लोग व्यंग्य भाव से
ले रहे हैं, वे
वास्तव में बहुत गम्भीर थे |
“यद्यपि
में शर्मा जी की तरह किसी माध्यमिक विद्यालय का प्रवक्ता तो नही, लेकिन एक बेसिक
विद्यालय का शिक्षक तो हूँ ही | अपने अनुभव के आधार पर मैं पूरी दृढ़ता के साथ कह
सकता हूँ कि शिक्षक के कार्य की क्षतिपूर्ति कभी नही हो सकती, न ही कोई कर सकता | पाँच दिन बाद अगर में
वह पढ़ाऊंगा जो मुझे कल पढाना है तो फिर वो कब पढ़ाऊंगा जो पाँच दिन बाद जो पढाना है
?” -सुनील जी बोले |
सब
अस्पष्टता की स्थिति में थे | देव ने स्पष्ट किया –“महोदय, शिक्षक के कार्य और अन्य सभी के कार्यों
में बहुत अन्तर है | और सबसे बड़ा अन्तर ये है कि सभी के कार्य परिमित होते हैं
जबकि शिक्षक का कार्य अपरिमित है | कभी भी कोई शिक्षक यह नही कह पाता कि आज उसका
कार्य पूरा हो गया | केवल निर्धारित की गयी पुस्तक को पूरा करा देने मात्र से ही
उसका कार्य पूरा नही हो जाता | जितनी देर जितने पलों के लिए हम शिक्षक अपने
शिष्यों के सानिध्य में होते हैं हमारा कार्य चलता ही रहता है | अगर किसी अन्य
कर्मी की कुछ फाइलें आज नही पूरी हो पायीं तो वो कल पूरी कर सकता है | लेकिन एक
शिक्षक को अपना कार्य करने की लिए छात्रों के बीच होना ही पड़ता है | जितने दिन वो
उनसे दूर रहता है उतने दिनों के उसके कार्य की अपूरणीय क्षति हो जाती है |”
सब ध्यान
से सुन रहे थे | सुनील जी पुन: खड़े हुए –“महोदय, मतदाता दिवस में शिक्षक और बच्चे रैली क्यों निकालें ? क्या
बच्चों को मतदान करना है ? कभी कुष्ठ रोग दिवस, तो कभी महिला दिवस | सबके सब
विद्यार्थियों से ही मनवाए जाते हैं | हर बार विद्यार्थियों को ही नुक्कड़ नाटक
करने और रैली निकालने के लिए कहा जाता है | उन्हें ये कार्य तो समाज के अन्य लोग
भी कर सकते हैं | विद्यार्थियों, शिक्षकों और विद्यालयों के समय को महत्वहीन समझा जाता है जबकि विद्यालयों
में ही तो देश के भविष्य का निर्माण हो रहा होता है | ये हमारा दुर्भाग्य है कि न
तो हमारे विद्यार्थी अपने समय के महत्व के विषय में बोल पाते और न ही हम छोटे
शिक्षक |”
सन्नाटा
छा गया |
“कोई भी
शिक्षक छोटा नही हो सकता | आप भी उतने ही बड़े हैं जितने की शर्मा जी और प्रोफेसर
देव | वस्तुत: सभी स्तरों पर पढ़ाने वाले शिक्षक एक ही श्रंखला की कड़ियाँ होते हैं
|” -आयुक्त महोदय शान्त चित्त से बोले |
“जो
प्रोफेसर देव समझाना चाह रहे थे वो हम समझ गये | वास्तव में शिक्षक के कार्य और
अन्य कर्मचारियों के कार्य में बहुत बड़ा अन्तर है | सभी शिक्षकगणों को रेलियों,
नुक्कड़ नाटकों, मानव-श्रंखला, रंगोली और साज-सज्जा आदि के कार्यो से मुक्त रखा
जाएगा .......... और शिक्षक महोदय आपका बहुत-बहुत आभार | आपने बच्चों को क्षति से
बचा लिया |”
सुनील जी
ने एक बार प्रोफेसर देव की ओर देखा –“महोदय मेरा क्या आभार ? ये तो देव साहब हैं
जो ऐसा वातावरण सृजित कर डालते हैं गूँगें शिक्षक और विद्यार्थी भी बोलने लगते हैं
|”
पहले बार
सभागार में हल्की सी हँसी छूटी |
गौतम ने
प्रोफेसर देव की ओर देखा | गुरु-शिष्य की नज़रें मिली | गौतम ने मन ही मन नमस्ते की
| देव भी समझ गये और मुस्कुरा दिए |
* * * *
-जय कुमार