गुरुकुल- 7

सृजन


                           रट्टा
प्रोफेसर अपने शिष्यों के साथ संकाय के सामने के परिसर में तैयार खड़े थे | अब तक सभी शिष्य आ चुके थे | थोड़ी देर बाद सभी महाविद्यालय के प्रेक्षागृह की और चल पड़े |
शिखा बोली –“सर, आज सभी सजे-धजे हैं | ऐसा लग रहा है जैसे सब मेला देखने जा रहे जा रहे हैं |”
इससे पहले कि कोई कुछ बोलता, हर्ष बोल पड़ा –“नही सर, ऐसा लगता है कि जैसे महर्षि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ कहीं भोज पर जा रहे हैं |”
एक पल को सभी ठिठके | फिर ठहाका लगाकर हँस पड़े |
“भोजन तो नही मिलेगा | लेकिन कुछ न कुछ ज्ञान अवश्य मिलेगा |”- प्रोफेसर बोले |
सभी प्रेक्षागृह में दाखिल हुये | कार्यशाला की पूरी तैयारी हो चुकी थी |
थोड़ी देर बाद उद्घोषक ने बोलना शुरू किया –“विभिन्न विद्यालयों और महाविद्यालयों से नयी शिक्षा नीति पर अपने अमूल्य अभिमत प्रदान करने आये सभी विद्वानों का हार्दिक स्वागत है | मैं अपने महाविद्यालय के प्राचार्य जी से कार्यशाला को प्रारम्भ करने की अनुमति चाहता हूँ |”
माँ सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीपक जलाकर वन्दना की गयी उसके पश्चात् एक-एक कर वक्ताओं ने बोलना प्रारम्भ किया | नयी शिक्षा नीति के प्रारूप में लिए गये सभी बिन्दुओं पर क्रमबद्ध तरीके से चर्चा हुई | बहुत से मसलों पर सहमति बनी तो बहुत से मसलों पर सहमति नही बनी | डॉ० प्रमिला जी द्वारा सभी मुख्य बातों को अंकित किया जा रहा था | आज की कार्यशाला में निकलने वाले निष्कर्षों को राज्य स्तर पर भेजने का दायित्व उन्हें ही दिया गया था |
                       * * *
दिन का तीसरा प्रहर हो चुका था | कार्यशाला अन्तिम चरण में पहुँच गयी थी .... और फिर जब सूची में अंकित अन्तिम वक्ता ने अपनी बात समाप्त की तो मंच संचालक ने सभा समाप्ति की घोषणा के लिए प्राचार्य जी से मंच पर आने का निवेदन किया |
मंच पर आकर प्राचार्य बोले –“आप सभी विद्वानों का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ | आप सभी के विचार निश्चित रूप से नयी शिक्षा नीति को एक उचित दिशा प्रदान करेंगें | अभी सभा समाप्ति की घोषणा नही कर सकता क्योंकि एक विद्वान अभी शेष है जिनका नाम सूची में नहीं था

| लेकिन यकीन मानिए वो कुछ न कुछ ऐसा विचार अवश्य रखेंगें जो हमे सोचने पर विवश कर देगा | मैं मंच पर आमन्त्रित करता हूँ अपने ही महाविद्यालय के शिक्षा संकाय के प्रोफेसर देव को |”
प्रोफसर चकित थे क्योंकि उन्होंने न तो अपना नाम मंच संचालक को दिया था और न है उन्हें बड़े-बड़े मंचों पर चढ़कर भाषण देना पसन्द है |
प्राचार्य जी ने फिर से पुकारा |
प्रोफसर ने असमंजस की दृष्टि से अपने अगल-बगल बैठे शिष्यों की और देखा |
गौतम ने धीरे से कहा- “जाइये सर |’’
प्रोफसर देव मंच पहुँचे | लेकिन उनके हाव-भाव से लग रहा था कि मानो वो कोई साधारण व्यक्ति हैं | कुछ श्रोता उन्हें देखकर व्यंग्य से मुस्कुराये भी |
प्रोफसर ने अपने-आपको संयत किया और बोलना शुरू किया –“देखिये आप लोगों की तरह विद्वान
तो मैं हूँ नही , और न ही नीति और राजनीति की बातें मुझे समझ आती |”
सभी हँस पड़े |
प्रोफेसर आगे बोले –“नयी शिक्षा नीति के सम्बन्ध में बहुत चर्चा हो चुकी | इस विषय में मुझे कुछ नही कहना है | हाँ, एक बात अवश्य है जो मुझे ऐसे अवसरों पर अवश्य कचौटती है | जब भी कहीं चार शिक्षक या शिक्षाविद इकट्ठा होकर अच्छे शिक्षण की बात करते हैं तो सबसे ज्यादा भर्त्सना जिसकी होती है वो है ‘रट्टा’ | वही आज भी यहाँ हुआ |”
श्रोताओं में से एक ने आपत्ति की –“तो आप क्या कहना चाहते हैं कि हम बच्चों को रटने के लिए प्रेरित करें ? महोदय ! एन०सी०एफ़०-2005 में प्रोफेसर  यशपाल ने जो सबसे पहला बिन्दु रखा है वो यही है कि शिक्षण को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाये |”
सभी ने सहमति से सिर हिलाया |
देव आगे बोले- “मित्रों ! तेज़ दर्द निवारक इंजेक्शन व्यक्ति के नाजुक अंगो जैसे यकृत और गुर्दों आदि के लिए बहुत हानिकारक कारक होता है | लेकिन अगर किसी को गम्भीर चोटें लग गयी हो तो ये इंजेक्शन देना डॉक्टरों की मजबूरी हो जाती है और मरीज़ के लिए उस समय यही उचित होता है ”


सभी ध्यान से सुनने लगे | सिद्धि अपने साथियों से बोली –“प्रोफेसर अब अपने असली रंग में आ रहे हैं |”
देव बोलते रहे –“नवजात शिशु को जब साँस लेने में थोड़ी सी भी दिक्कत  होती है तो डॉक्टर उसे ऑक्सीजन प्रणाली पर डाल देते हैं | कुछ समय बाद जब बच्चा स्वयं अच्छी तरह साँस लेने लगता है तो ये प्रणाली हटा ली जाती है | आप मुझे बताएं कि डॉक्टर ऐसा करके कुछ गलती करते हैं ?”
प्रमिला जी बोली- “इसमें क्या समस्या है ? ये तो बच्चे लिए बेहतर ही हैं |”
देव रुके नही –“ राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा बनानी हो या नयी शिक्षा नीति हम केवल आदर्शवाद की बाते उसमें डालकर उसे सुन्दर दिखाने की चेष्टा करते हैं | बच्चों के मनोविज्ञान और उनकी शारीरिक-मानसिक क्षमताओं को नज़र अंदाज़ करते हैं क्योंकि हमे तो अपने आपको विद्वान सिद्ध करना होता है | प्रोफेसर यशपाल बच्चों के बिलकुल शुरूआती स्तर पर भी रट्टे की मुखालफत करते हैं | सम्मानित साथियों हमारे पूर्ववर्ती विद्वानों ने बहुत शोध-अनुसन्धान के बाद अधिगम के तीन स्तर बतायें है –स्मृति स्तर, बोध स्तर और चिन्तन स्तर | प्राथमिक शिक्षा में बच्चा स्मृति स्तर पर होता है | वो सीखता है, भूल जाता है, फिर सीखता है फिर भूल जाता है और फिर सीखता है | इसी क्रम में वो कुछ समय बाद सीख ही लेता है | यहाँ बच्चा रटता ही है क्योंकि उसकी आयु ही ऐसी है, वो अधिगम के स्मृति पर होता है, उसका मस्तिष्क उसी अवस्था में है | आपकी नीतियाँ सुनने में भले ही अच्छी लगती हों लेकिन ये बच्चे के लिए बहुत बोझ सिद्ध होती है | एक छोटे बच्चे से ये अपेक्षा करना कि  वो वयस्कों को तरह हर चीज़ को समझ जाये और उस पर अभिव्यक्ति देने लेगे | क्या यह उस पर आत्याचार नही ?”
प्राचार्य जी गर्व से तने जा रहे थे | प्रोफेसर के शिष्य भी अभिभूत थे |
देव ने सभा में उपस्थित एक शिक्षक को सम्बोधित करते हुये पूछा –“सर, क्या आपको गायत्री मन्त्र याद है ?”
शिक्षक- “जी, बिलकुल याद है |”
देव- “क्या आप इसका अर्थ भी जानते हैं |”
शिक्षक –“जी बिलकुल |”
देव –“कृपया मुझे बताइये कि जिस दिन आपने गायत्री मन्त्र याद किया, क्या उसी दिन आपको


इसका अर्थ भी समझ में आ गया था |”
शिक्षक –“नही, नही जब गायत्री मन्त्र मेरे याद हुआ उस समय में मैं केवल छ: या सात साल का था | इसका अर्थ तो  मुझे बहुत बाद में समझ आया | उस समय इतनी समझ कहाँ थी जो इसके अर्थ को समझ पाता |”
देव –“यही तो मैं कहना चाह रहा हूँ | कक्षा एक-दो के बच्चे अगर रटकर भी कुछ याद करते हैं तो उन्हें करने देना चाहिए | कुछ समय बाद वो खुद ही उन चीज़ों को समझने का प्रयास करने लगेंगें जो उन्होंने बिना समझे रट ली थी | लेकिन वो समय क्या होगा यह उनका मानसिक और शारीरिक विकास तय करेगा, हम और आप नही | व्यवाहरिक तौर भी देखिये बच्चा कविता पहले रटता है और कविता के शब्दों की रचना और अर्थ उसे बाद में समझ आते हैं | बच्चा रटकर सीखता है कि भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी हैं | महात्मा गाँधी कौन हैं और राष्ट्रपिता क्यों है ये वो बाद में समझते हैं | इसलिए कहता हूँ कि रट्टा इतना भी बुरा नही जितना बुरा उसे कहा जाता है |”
जैसे ही प्रोफेसर ने बोलना बन्द किया सभा तालियों से गूँज उठी | सभी उनकी गहरी और व्यवहारिक सोच की प्रशंशा कर रहे थे | वे वापस अपने शिष्यों के बीच आकर बैठ गये |
आरधना गंभीरता से बोली –“सर एक बात कहना चाहती हूँ |”
प्रोफेसर आश्चर्य से बोले- “हाँ बोलो |”
आरधना हाथ जोड़कर बोली –“नमस्ते |”
गुरु और सभी शिष्य जोरो से हँस पड़े और सभी ने प्रोफेसर की ओर नमस्ते की मुद्रा में हाथ जोड़ लिए |

-जय कुमार








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