गुरुकुल-2

सृजन


2. कुशल गृहिणी

प्रोफ़ेसर अपने शिष्यों के साथ संकाय के बाहर खड़े थे | हमेशा की तरह आज भी कहीं बाहर चलने की तैयारी थी | गौतम अभी तक नही आया था | बस उसी के आने की प्रतीक्षा की जा रही थी | तभी वहाँ से प्राचार्य जी गुजरे | “ये क्या है प्रोफेसर देव ? कभी इन बच्चों को कक्षा के अन्दर भी बैठाकर पढ़ा लिया करो|” थोड़ी सी नारजगी से वो बोले | प्रोफेसर ने मुस्कुराकर हाथ जोड़ लिए | उनके शिष्य समझ गये कि प्रोफेसर ने ऐसा बहस से बचने के लिए किया है | प्राचार्य भी बिना उत्तर की प्रतीक्षा किया आगे बढ़ गये | बिना पीछे पलटे वो भी मुस्कुराये | वो जानते थे कि प्रोफ़ेसर देव की अपनी अलग ही शैली है | लेकिन भविष्य के शिक्षकों को वो तराशकर उत्कृष्ट रूप दे देते हैं और इसीलिए प्राचार्य भी कभी उनसे ज्यादा टोका-टाकी नही करते |
गौतम आ चुका था | आकाँक्षा ने कहा –“चलिए सर, बताइये आज कहाँ चलना है ?”
“तुम्हारे घर” प्रोफेसर से पहले ही हर्ष बोल पड़ा |
“चुपकर मोटे” गुस्से से आकाँक्षा ने हर्ष को आँखे दिखायी |
प्रोफेसर कुछ सोचकर बोले –“हर्ष ठीक कहता है | चलो आज सब आकाँक्षा के घर ही चलते हैं |”
“लेकिन सर, मेरे ही घर क्यूँ ? घर पर पापा भी नही हैं और भैया बाहर गए हैं ?” आकाँक्षा कुछ परेशान होकर बोली |
लेकिन प्रोफेसर ने सब को चलने का आदेश दे दिया | सब लोग आकाँक्षा के घर पहुँच चुके थे | उसकी माँ कपडे धोने में व्यस्त थीं | उन्होंने प्रोफेसर को प्रणाम किया और सभी बैठने को लिए कहा | वो बोलीं- “आप लोग बैठिये , मै आप सबके लिए कुछ खाने-पीने को लाती हूँ|”
हर्ष का चेहरा खिल उठा – “हाँ माँ जी, ले आइये |”
प्रोफेसर बोले –“सरला जी, अभी नही अभी बच्चों की कक्षा चल रही है |”
“कक्षा और यहाँ ? मैं कुछ समझी नही सर |” सरला जी बोलीं |
  “जी हाँ, आप अपना कार्य पूरा करते रहिये |” फिर उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि सभी उन्हें ध्यान से देखते रहें | सरला जी ने आकाँक्षा से सुन रखा था प्रोफेसर के बारे में | आज उन्हें विश्वास हो गया कि इनकी हरकतें वास्तव में बड़ी अजीब होती हैं |
 मशीन ने संकेत दिया कि उसमे भरे हुए कपडे धुल चुके हैं | सरला जी ने ज़ल्दी से उन कपड़ों को निकालकर एक बाल्टी में भरा और कुछ ऊनी कपडे मशीन में दाल दिए | फिर उन्होंने पास में रखा वाशिंग पाउडर का डिब्बा उठाया और बाथरूम से जाकर दूसरा डिब्बा लेकर आयीं | मशीन में वाशिंग पाउडर डाला और मशीन फिर से चालू कर दी | उन्होंने प्रोफेसर से कुछ कहना चाहा लेकिन प्रोफेसर ने उन्हें चुपचाप कार्य करते रहने का इशारा किया | धुले हुए कपड़ों को सूखने के लिए डालकर वो रसोईघर में चली गयी |
  प्रोफसर ने छात्राओं को रसोईघर में जाने का आदेश दिया | सरला जी बर्तन धोने में लग गयी | सभी छात्राएँ उनको ध्यान से देखती रहीं | कुछ छात्राएं उनकी मदद भी करनी चाह रही थीं लेकिन उन्हें स्मरण था कि ऐसा करने का उन्हें आदेश नही है | जब तक सारे बर्तन साफ नही हो गये तब तक पूरे घर में ख़ामोशी छायी रही | अन्ततः यह कार्य भी पूरा हुआ | सरला जी प्रोफेसर के सम्मुख आकर खड़ी हो गयी | मानो पूछ रही हो कि अब क्या आगे क्या करना है | प्रोफेसर समझ गये और हँसकर बोले –“सरला जी, मेरा शिक्षण पूरा हुआ | अब आप चाहे तो बच्चों को चाय पिला सकती हैं |
हर्ष तपाक से बोला- “और माँ जी, पकौड़ियाँ भी खिला सकती हैं|”
सभी ने ठहाका लगाया |
आराधना धीरे से बोली –“सर आज की कक्षा पूरी ? लेकिन.......”
प्रोफेसर ने सरला जी को जाने का इशारा किया और अपने शिष्यों को अपने इर्द-गिर्द बैठने का | जिसे जहाँ जगह मिली वही बैठ गया | कोई कुर्सी, कोई मेज पर तो कोई फर्श पर | वैसे भी प्रोफेसर की कक्षा में बैठक व्यवस्था अधिकतर ऐसी ही रहती है | सभी पूरी तरह ध्यानकेन्द्रित किये हुए थे क्योंकि वो जानते थे कि अब वास्तविक ज्ञान की वर्षा होने वाली है |
प्रोफ़ेसर ने सबसे प्रश्न किया –“हमारे सामने सरला जी ने कुछ कपडे मशीन से निकाले और बाद में दूसरे कपडे डाले जबकि कपडे इतने ज्यादा नही थे | सारे एक साथ ही धोये जा सकते थे | लेकिन उन्होंने दो बार में धोये | क्यों ?”
शिखा बोली –“सर, बाद वाले कपडे पहले कपड़ों जैसे नही थे बल्कि ऊनी थें इसीलिए तो उन्होंने दूसरी बार में वाशिंग पाउडर भी बदलकर दूसरा प्रयोग किया था |”
“बहुत अच्छा” प्रोफेसर मुस्कराए और पुछा – “रसोईघर में क्या-क्या हुआ ?”
शिखा बोली –“वहाँ क्या होना था सर ? माँ जी ने बर्तन मांजे और क्या ?”
लेकिन प्रोफेसर और बेहतर उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे थे |
आराधना ने प्रयास किया _ “सर, माँ जी ने लोहे के तवे और स्टील के बर्तनों के लिए लोहे की छीलन से बने जूने तथा प्लास्टिक के नाज़ुक बर्तनों के लिए प्लास्टिक के रेशों से बने जूने का प्रयोग किया |”
प्रोफेसर उत्तर से सन्तुष्ट थे |
अब वे गम्भीर मुद्रा में बोले –“विद्यालयों में पढने वाले बच्चे भी इसी तरह अलग-अलग मन-मष्तिस्क वाले होते हैं | उनका शिक्षण भी उनकी विभिन्नताओं को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए | लेकिन अधिकतर शिक्षक सभी बच्चों को एक ही तरीके से पढ़ाने में लगे रहते हैं और उसका परिणाम यह होता है कि जिन बच्चों के लिए उनका तरीका अनुकूल होता है वे तो प्रकरण को सीख-समझ लेते हैं लेकिन दूसरे उससे वंचित रह जाते हैं या यह कहें कि उनकों हानि भी हो जाती है क्योंकि वो कक्षा की मुख्यधारा से कट जाते हैं|”
“इसी तरह जैसे कि प्लास्टिक के नाजुक बर्तनों को लोहे के कठोर जूने से रगड़ने पर उन्हें हानि हो जाती है |” आराधना ने कहा |
“और जिस तरह प्लास्टिक का कोमल जूना लोहे के तवे को अच्छी तरह साफ नही कर पाता उसी तरह कुछ शिक्षण विधि कुछ बच्चों के ज्ञान में वृद्धि नही कर पाती |” आकाँक्षा ने जोड़ा | 
 आगे गौतम बोला –“समझ गये सर, आप कहना चाहते हैं कि हमें बच्चों की वैयक्तिक भिन्नताओं को ध्यान में रखना चाहिए और अपनी कक्षाओं में भाँति- भाँति की शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए |”
प्रोफेसर प्रसन्न थे कि उनके शिष्य आज के सबक को अच्छी तरह समझ गये | उधर शिष्य भी आनन्दित थे कि प्रोफेसर कितना कम बोलकर कितना कुछ समझा देते हैं |
सरला जी चाय और पकौड़ियाँ ले आयी | फिर ने गर्म-गर्म चाय का आनन्द लिया और जी भरकर पकौड़ियाँ खायीं |





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