उत्तम माँझी
सभी आज्ञाकारी शिष्य उनके पीछे-पीछे चले जा रहे थे | सबके मन में कौतुहल था | जाने आज क्या नया सबक सिखाने वाले हैं प्रोफेसर ? हर्ष ने धीरे से विवेक के कान में कहा- “मित्र, आज ऐसा कौन सा अध्याय है जिसके लिए हमें झील पर ले जाया जा रहा है?” उत्तर आनन्द ने दिया –“तुझे झील में धक्का देकर हम सब भाग आयेंगें, मोटे” सभी ठहाका मारकर हँसने ही वाले थे कि गौतम ने सबको घूरकर चुप रहने का इशारा किया | वो जानता था कि प्रोफेसर कुछ भी व्यर्थ ही नही करते | उनके हर एक कृत्य में एक शिक्षा छिपी होती है जो उन सबको एक योग्य शिक्षक बनाने के लिए बहुत आवश्यक होती है | रास्ते भर सभी शिष्याएँ तो चुप ही रही | वो तो बस प्रोफेसर का मन्तव्य समझने का प्रयत्न कर रही थी |
थोड़ी देर में सभी झील के किनारे पहुँच गए | झील में दो नौकाएँ पहले से विद्यमान थी | दो नौकाओं में एक-एक माँझी नाव खेने के लिए तैयार खड़ा था | सभी छात्राध्यापक इतना तो समझ ही गये थे कि इन नौकाओं की व्यवस्था स्वयं प्रोफेसर ने पहले से कर रखी होगी | लेकिन करना क्या है ? यह अभी किसी की समझ में नही आ रहा था | प्रोफेसर ने आदेश दिया –“तुम लोग सँख्या में कुल बीस हो | प्रत्येक नाव पर पाँच-पाँच छात्र-अध्यापिकाएँ और पाँच-पाँच छात्र-अध्यापक सवार हो जाएँ | तुम लोग झील के दूसरे किनारे तक जाकर वापस आओगे |
आदेश का पालन हुआ और दोनों नौकाओं पर दस-दस जन सवार हो गये | शिखा ने खिन्नता से कहा –“हमारी नाव पर मोटा हर्ष भी है इसलिए हम दूसरी नाव से पहले वापस नहीं आ पायेंगे |” कुछ साथी उदास हुए, तो कुछ हँस पड़े | लेकिन राघव कुछ सोचकर बोला –“साथियों ! हमें दूसरे से ज़ल्दी आने का प्रयास करना है ऐसा तो कुछ प्रोफेसर ने कहा नही |” विवेक ने माँझी से कहा –“काका ! आप पूरा मन लगाकर नाव चलाओ | कहीं ऐसा न हो पहले वापस आने वाली नौका को ही प्रोफेसर विजयी घोषित कर दें | माँझी ने नाव में रखी पतवारों में से दो अच्छी सी पतवार चुनी और नौका लेकर चल दिया |
माँझी बड़ी मेहनत और कुशलता से नाव चला रहा था | सभी सवार प्रशंशा की दृष्टि से माँझी की ओर देख रहे थे | माँझी इस बात से मन ही मन सन्तुष्ट और प्रसन्न प्रतीत हो रहा था कि उसके सवार उसकी कुशलता को समझ रहे हैं और उसके परिश्रम का आदर कर रहे हैं | नाव अच्छी गति से दूसरे तट की ओर बढ़ने लगी |
परन्तु दूसरी नाव में तो विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गयी थी | माँझी ने सभी सवारों से एक-एक पतवार थाम लेने को कहा | सभी ने एक स्वर में विरोध किया- “प्रोफेसर ने तो यह नही कहा था कि हम भी पतवार चलायेंगें |” माँझी तपाक से बोला –“प्रोफेसर ने यह भी तो नही कहा था कि अकेले मुझे ही पतवार चलानी है |” गौतम ने सभी से कहा- “सभी पतवार थाम लें और जैसे माँझी काका कहें वैसे ही करें |” आकाँक्षा असन्तोष से बोली –“दूसरी नाव के माँझी काका स्वयं नाव चलाकर ले गये हैं और सभी सवार आराम से बैठे हैं |” गौतम ने एक बार सबकी ओर देखा और फिर पतवार थामकर बैठ गया | आगे कोई कुछ नहीं बोला और सबने पतवार थाम ली | माँझी काका सबको बताते रहे कि कैसे पतवार चलानी है | कई बार नाव डगमगायी भी लेकिन माँझी काका अनुभवी थे वो दो-चार बार चप्पू मारकर नाव को सही दिशा में कर देते | लेकिन अभी भी कुछ साथियों को एस बात का मलाल था कि पहली नाव वाले माँझी काका नाव को बिल्कुल सन्तुलित रखते हुए बडे परिश्रम से नाव को तेज़ी से चलाते हुए बहुत आगे ले गये |
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प्रोफेसर झील के इस ओर ही एक वृक्ष के नीचे बैठे नौकाओं के वापस आने की प्रतीक्षा कर रहे थे | दोपहर होने को आयी थी | दूर से दोनों नौकाएँ वापस आती हुई दिखायी दी | जब नौकाएँ तट पर पहुँची तो प्रोफेसर ने दोनों नौकाओं के सवारों को अलग-अलग बैठने के लिए कहा | उन्होंने माँझी काकाओं को जाने नही दिया और उन्हें भी उनके यात्रियों के साथ ही बैठने को कहा | अब प्रोफेसर ने पहली नौका के यात्रियों से अपने अनुभव को साझा करने को कहा |
हर्ष ने खड़े होकर कहा –“सर , हमारे माँझी काका एक उत्तम माँझी हैं उन्होंने बडे परिश्रम से नाव चलायी |
आकाँक्षा ने शिकायत भरे स्वर में कहा- “हमारे माँझी काका ने तो हमसे पतवार बहुत चलवायी और खुद थोड़े बहुत ही चलायी |
प्रोफेसर ने हर्ष से पूछा- “जैसा कि तुमने बताया कि तुम्हारे माँझी बहुत परिश्रमी हैं और तुम लोगों का बहुत ध्यान भी रखा तो फिर तो तुम लोगों ने नौका विहार का बड़ा आनन्द लिया होगा ?
हर्ष से पहले ही राघव बोल पड़ा –“आनन्द कैसा सर ? प्रातःकाल से दोपहर हो गयी नौका में बैठे-बैठे | यात्रा रुचिकर नही थकाऊ रही |
प्रोफेसर बोले- “रुचिकर क्यों नही ?आज तो तुम नाव चलाना सीख गये |”
हर्ष और उसके साथियों से एक-दूसरे की तरफ आश्चर्य से देखा और बोले- “नही सर, हमें नही लगता कि हममे से कोई भी नाव चलाना सीख गया हो |
अबकी बार प्रोफेसर का प्रश्न उनके माँझी से था –“आप कैसा अनुभव कर रहे हैं ?”
माँझी ने हाथ जोड़कर कहा- “प्रोफेसर जी, मैंने अपनी पूरी क्षमता से नाव चलायी | इस एक प्रहर तक चले नौकायन के उपरान्त में पूरी तरह थक गया हूँ |
प्रोफेसर ने उसे बैठने का संकेत किया और दूसरे माँझी से बोले –“आप तो थके हुए प्रतीत नही हो रहे |”
दूसरा माँझी ने उत्तर दिया –“प्रोफेसर जी, नाव मैंने नहीं चलायी | नाव तो मेरे सवारों ने ही चलायी | हाँ, जब-जब नाव डगमगायी तो मैंने नाव को सम्भालने के लिए थोडा-बहुत पतवार चलायी | जब-जब नाव अनुचित दिशा में गयी तब भी मैंने थोडा बहुत ही पतवार चलायी | इसीलिए मुझे अधिक थकान का अनुभव नही हो रहा |
आकाँक्षा के पास बैठी मानवी से प्रोफेसर ने कहा- “क्या तुम्हे भी अपने माँझी से शिकायत है ?”
“नही प्रोफेसर !” मानवी बोली- “वास्तव में हमारे माँझी एक उत्तम माँझी हैं | अगर वो स्वयं अकेले ही नाव चलाते तो बहुत थक भी जाते और हमारी यात्रा भी अरुचिकर हो जाती | जबकि हमने तो यात्रा का आनन्द लिया कयोंकि हम नौकायन में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे हमें पता ही नहीं चला कब हमने अपनी यात्रा पूरी कर ली |”
अब गौतम बोला- “और सर, हम पतवार चलाना भी सीख गये |”
प्रोफेसर मुस्कुराये | उन्होंने दोनों मांझियों को पारिश्रमिक देकर विदा किया |
रास्ते में गुरुकुल की ओर लौटते हुए प्रोफेसर अपने प्रशिक्षु शिक्षकों को समझाते हुए जा रहे थे- “कक्षा एक नाव की तरह होती है, विद्यार्थी सवारी की तरह और शिक्षक माँझी की तरह होता है | एक उत्तम शिक्षक को उत्तम माँझी की तरह अपने ज्ञान और परिश्रम का प्रदर्शन करने की बजाय कक्षा के संचालन में विद्यार्थियों को सहभागी बनाना चाहिए तभी वह विषयवस्तु को भली प्रकार समझकर सीख पायेंगें |
हर्ष बोला- “अगर छात्रों को पाठ्यवस्तु में सहभागी नही बनायेंगें तो हम लोग हमारे माँझी की तरह बहुत थक जायेंगें, छात्रों में निष्क्रियता उत्पन्न हो जाएगी और कक्षा मेरी तरह बोझिल हो जाएगी |
सभी ठहाका मारकर हँस पड़े |
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-जय कुमार