अपनी बात (सम्पादकीय नवम्बर 2019)

सृजन


      भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने भिन्न-भिन्न वस्तुओं के दान को महान बताया है | जैसे किसी के लिएकन्यादानमहादान है तो किसी के लिए रक्तदान या फिर देहदान | कुछ ज्ञानी  विद्यादान को सबसे बड़ा दान बताते हैं | बहुत से विद्यादानियों को भिन्न-भिन्न और बड़े-बड़े मंचों पर प्रमाण-पत्र प्राप्त करते हुए देखता हूँ तो यह जिज्ञासा स्वाभाविक रूप से मन में ही जाती है कि इन गुणीजनों ने आखिर कौन सी विद्या का दान किया है | किया भी है तो कैसे किया है ? लेकिन यह बात इसी तरह गुप्त रह जाती है जैसे कि किसी मन्दिर में किया गया गुप्तदान | कहते हैं कि धर्मस्थलों पर प्रत्यक्ष दान की अपेक्षा गुप्त दान का अधिक महात्म्य है | शायद इसलिए कि वो धन या सम्पति का दान होता है | परन्तु धन या सम्पति के दान और विद्यादान में एक बहुत बड़ा अन्तर है | और वो अन्तर ये कि कि धन या सम्पति किसी को देने या बाँटने पर कम हो जाती है या घट जाती है लेकिन ज्ञान या विद्या बाँटने पर घटती नही | यह बात भारतीय शास्त्रों द्वारा कही गयी है |
एक छोटी सी सन्तोष की बात यह है कि आजकल एक निजी संस्था इन विद्यादानियों को एक-एक प्रमाण-पत्र के बदले में इस गुप्तदान की जानकारी जुटा रही है और फिर सभी के लिए इन रहस्यमयी विद्यादानों को उजागर कर रही है | इस निजी संस्था और उनकी पत्र-पत्रिकाओं या अन्य प्रकाशनों को बुरा तो नही कहा जा सकता लेकिन यह प्रश्न भी स्वाभाविक ही है कि आखिर यह रहस्य सरकारी संस्थाओं या उनसे प्रकाशित होने वाले प्रकाशन क्यों नही हासिल कर पाते ? कम से कमसृजनको तो इन गुप्त विद्यादानों में हमेशा रूचि रहती है | ‘सृजनआपको प्रमाण-पत्र भले ही न दे पाये लेकिन विश्वास कीजिये इससे आपको आत्मसन्तोष तो अवश्य ही प्राप्त होगा |
प्रकाश पर्वकी ढेरों शुभकामनायें |
                                        -जयकुमार

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