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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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बुधवार, 2 अक्टूबर 2019

गुरुकुल-8




दण्ड
कक्षा में प्रवेश करने से पहले ही प्रोफेसर समझ गये कि कक्षा में ऊधम मचा हुआ है | उनके अन्दर आते ही सब लोग शान्त हो गये | सब अपने आपको धीर-गम्भीर दिखाने की कोशिश कर रहे थे जैसे कि किसी ने कुछ किया ही न हो | प्रोफ़ेसर कुछ नही बोले | सभी शिष्य एक-दूसरे की और देखने लगे | अब सबके मन में ग्लानि के भाव आने शुरू हो गये | प्रोफेसर के चेहरे पर गुस्से के भाव नही थे और सम्भवतया यही बात शिष्यों को बहुत कष्टदायी लग रही थी | प्रोफ़ेसर शान्त भाव से अपने शिष्यों को देख रहे थे |गुरु शिष्यों के चेहरे के भाव पढने की कोशिश कर हर थे और शिष्य गुरु के |सभी शिष्य अवाक् थे |
आखिर जब सन्नाटा असहनीय हो गया तो गौतम खड़ा होकर बोला- “सर, हम सब क्षमा प्रार्थी हैं, कृपया हमें क्षमा कर दीजिये |”
शिखा – “सर, आप हमें खूब डांटिए |”
प्रोफेसर शान्त भाव से ही बोले –“लेकिन क्यों ?”
हर्ष –“सर, क्योंकि हमने बहुत शोर मचा रखा था | हम झगडा भी कर रहे थे | आज तो आप हमारी पिटाई भी कर दीजिये |”
अब प्रोफेसर मुस्कुराते हुए बोले –“अरे ! बस इतनी सी बात के लिए पिटाई ?”
सिद्धि- “सर अगर हम छोटे बच्चे होते तब तो आप हमारी पिटाई करते ही |”
प्रोफेसर हँसते हुए बोले –“तुम लोग कैसी पागलों जैसी बातें कर रहे हो ? भला शिष्यों को भी कहीं पीटने की ज़रूरत पड़ती है ? तुम लोग छोटे भी होते तो भी पिटाई की ज़रूरत न पड़ती ”
इस बार राघव बोला –“लेकिन सर, शिष्य गलती करते हैं तो उनकी पिटाई करनी ही पड़ती है | वो एक कहावत है ना अंग्रेजी में – spare the rod and spoil the child”
प्रोफेसर थोडा सा गम्भीर होते हुए बोले –“आज के परिप्रेक्ष्य में ऐसा कुछ नही है | पहले के ज़माने में स्कूलों में पिटाई होना सामान्य सी बात है | लेकिन अब समय बदल चुका है आज छोटे बच्चे भी शारीरिक दण्ड स्वीकार नही करते | उनके कोमल मन पर पिटाई का बहुत बुरा प्रभाव देखने को मिलता है |”
कोई नही बोला |
प्रोफेसर आश्चर्य से बोले –“अरे !! तुम लोगों के मन में कुछ सन्देह अभी शेष है शायद |  तुम लोग

शिक्षक बनने जा रहे हो तुम्हें दण्ड के प्रभाव को समझना ही होगा और शारीरिक दण्ड का तो विशेष रूप से |”
अभी भी कोई नही बोला | सब एक दूसरे की ओर देखने लगे |
प्रोफ़ेसर हँसते हुए बोले –“ तो ठीक है, कल सुबह आठ बजे मिलते हैं ...”
“और सत्य की खोज में निकलते हैं |” प्रोफसर का वाक्य हर्ष ने पूरा किया |
इस बार सभी हँसे तो ज़रूर .. लेकिन आज इस हँसी में वो बात नही थी |
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अगले दिन सभी लोग संकाय के सामने ठीक आठ बजे तक इकठ्ठा हो गये | प्रोफ़ेसर भी सही समय पर आ गये  | वहाँ से फिर सभी लोग पास के एक गाँव की और निकल पड़े | गाँव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पहुँचे | वहाँ के प्रधानाध्यापक से बच्चों को दिए जाने वाले शारीरिक दण्ड और उसके प्रभाव के विषय में बातचीत की गयी | प्रधान अध्यापक महोदय ने शारीरिक दण्ड की बहुत भर्त्सना की | थोड़ी देर विद्यालय में रूककर प्रोफसर और सभी शिष्य विद्यालय से बाहर आ गये |
शिखा ने शंका व्यक्त की –“सर, अध्यापक महोदय ने वैसे तो शारीरिक दण्ड को बहुत बुरा बताया लेकिन यह भी तो हो सकता है कि उन्होंने हमें बाहरी व्यक्ति समझकर ऐसा इसलिए बोला हो कि हमारी दृष्टि में वो अपने आपको महान दिखाने की कोशिश कर रहे हों |”
गौतम ने भी समर्थन किया- “हाँ सर, शिखा की बात में दम है |”
प्रोफ़ेसर बोले–“तो ठीक है हम एक दूसरे विद्यालय में चलते हैं |अभी छुट्टी होने में काफी समय है |”
सभी लोग उसी गाँव के सरकारी पूर्व माध्यमिक विद्यालय में पहुँचे | उन्हें विद्यालय में आया देख विद्यालय के शिक्षक सुनील सिंह जी लपककर  उनके पास गये | प्रोफ़ेसर को सादर प्रणाम किया और सभी को आदर सहित कार्यालय में ले गये |
सुनील सिंह अभिभूत थे –“सर, आज शिक्षण-शास्त्र के आप जैसे प्रकाण्ड विद्वान को अपने विद्यालय में देखकर मैं अपने आपको धन्य समझ रहा हूँ |”
फिर वो उनके शिष्यों से बोले –“मुझे आप लोगों से ईष्या हो रही है | काश मैं भी आपका सहपाठी होता | आप लोग बड़े किस्मत वाले हैं | निः:सन्देह आप सितारों की तरह चमकने वाले शिक्षक बनेंगें |”
प्रोफसर ने टोका –“बस-बस सुनील जी, ये सब बातें तो होती रहेंगी | अभी कुछ काम की बात कर ली जाए |”
सुनील सिंह –“जैसा आपका आदेश सर, वैसे आपकी काम की बातों में हम अध्यापकों और छात्राध्यापकों के लिए कोई न कोई बड़ी सीख छिपी रहती है |”

प्रोफसर –“दरअसल आज मैं कुछ सिखाने नही आया | आज मैं अपने शिष्यों को आपके पास लाया हूँ कि ये आपसे कुछ सीख सकें |”
गौतम ने स्पष्ट किया –“सुनील सर, हम लोग यह जानने का प्रयास कर रहें हैं कि शारीरिक दण्ड का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है ? ”
सुनील सिंह बोले –“युवा साथियों, देव सर की यही बात उन्हें बेहद आदरणीय बना देती हैं कि वो कभी किसी पर अपना मतारोपण नही करते....... अपने शिष्यों पर भी नही | हमेशा सत्य की खोज में लगे रहते हैं |” वो आगे बोले –“आप लोग दो मिनट रुकिए विद्यालय की छुट्टी का समय हो गया है | मैं बस अभी आया |
सुनील सिंह ने अपने साथी अध्यापक को निर्देश दिए कि वो बच्चों की छुट्टी करके सभी ताले वगैरह अच्छी तरह लगवाकर आये | फिर वो प्रोफसर और उनके शिष्यों को लेकर उस रास्ते पर निकल पड़े जो मुख्य सडक तक जाता है | यह रास्ता लगभग एक किलोमीटर लम्बा था |
हर्ष ने धीरे से सिद्धि के कान में कहा –“सुनील जी भी देव सर की तरह बात को सीधी तरह नही समझाते | जरा सी बात के लिए पता नही कहाँ ले जा रहे हैं |”
सिद्धि ने आँखे दिखाते हुए कहा –“बेवकूफ ये वही रास्ता है जिससे हम आये थे और हमें वापस भी इसी रास्ते से जाना था |”
चलते-चलते एक जगह सुनील जी ने सभी को रुकने का इशारा किया | सडक किनारे कुछ किसान-मजदूर गन्ने के खेत में काम कर रहे थे | सुनील जी ने जोर से किसी को आवाज़ लगायी | आवाज़ सुनकर एक सत्रह-अठारह वर्ष का एक युवक उनके पास आया | सुनील जी ने युवक के हाल-चाल पूछे | कुछ दो-चार औपचारिक बात की और फिर उससे विदा ले आगे चल दिए | सब सोच रहे थे कि ऐसी तो कोई महत्वपूर्ण बात सुनील जी ने युवक से की नही तो फिर यों उससे रूककर बात करने का क्या उद्देश्य हो सकता है |
सुनील जी बोले –“मैं जानता हूँ युवकों कि आप क्या सोच रहे हो | वास्तव में यह युवक ही आपके सवाल का सटीक ज़वाब है |”
आकांशा ने आश्चर्य से कहा –“लेकिन कैसे ??”
सुनील जी ने बतलाना शुरू किया –“कभी यह लड़का वरुण मेरे विद्यालय में पढ़ा करता था | बहुत होनहार बच्चा था | एक दिन वरुण की माँ का देहान्त हो गया | यह गुमसुम सा रहने लगा | लेकिन पढाई से जी नही चुराता था |  कुछ महीनों बाद मैंने देखा कि यह लड़का विद्यालय से कई-कई दिन गायब रहने लगा है | बहुत चिडचिडा सा भी हो गया था | अब वरुण पढाई में भी पिछड़ने लगा था | मुझे इसे देखकर बहुत दुःख भी होता और गुस्सा भी बहुत आता | कभी-कभी तो वरुण का कई-कई दिन स्कूल से गायब रहना मुझे इतना अखरता कि मैं इसकी खूब पिटाई कर देता | मैंने पाया कि पिटाई करने से भी

इसकी उपस्थिति में कोई सुधार नही हुआ | बल्कि अब तो वरुण पढाई में भी पिछड़ने लगा | जब मैंने छानबीन की तो पता चला कि इसकी माँ की मृत्यु के छ: महीने बाद ही एक दिन वरुण का पिता कहीं चला गया था | इसने बहुत प्रतीक्षा की लेकिन पिता लौटकर नही आया | उडती-उडती खबर मिली कि शहर में किसी दूसरी महिला के साथ वो अपनी दूसरी ज़िन्दगी शुरू कर चुका था |
मुझे बहुत पछतावा हुआ  | वरुण अपनी सात साल की बहन के लिए माँ और पिता दोनों बना हुआ था | उसका और अपना पेट भरने के लिए उसे स्कूल से छुट्टी मारकर किसानों के खेतों में मजदूरी के लिए जाना पड़ता था .............. ...... मैं तो उसकी समस्याओं को  समझ गया था | लेकिन इन्टर कॉलेज में उसके शिक्षक उसकी समस्याओं और मनोदशा को नही समझ पाए | एक तरफ अपनी और अपनी बहन के पेट की भूख और दूसरी तरफ विद्यालय में, कभी उपस्थिति को लेकर तो कभी कॉपी-किताब न होने को लेकर शिक्षकों की लताड़ और मारपीट .......... और फिर वो दिन आ ही गया जब यह बच्चा टूट गया | स्कूल छोड़ दिया इसने ................. हमेशा के लिए ........... किसानों के खेतों में नियमित रूप से मजदूरी  के लिए जाने लगा ............ इसे मुक्ति मिल गयी ..... भूख से भी और शिक्षकों की पिटाई से भी ........”
......................................   कुछ देर कोई कुछ न  बोल पाया ... सभी निः:शब्द थे |
नम आँखों और रुधें गले से आराधना बोली- “काश......रोज़-रोज़ वरुण की पिटाई करने वाले शिक्षक एक बार तो उसे प्यार से पास बैठकर उसकी बात सुनते |”
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मुख्य सडक आ चुकी थी |
सभी ने दुखी मन से एक दूसरे की ओर देखा |
प्रोफसर देव ने अब आज के प्रकरण की व्याख्या करना उचित नही समझा | पहले ही सब लोग सब-कुछ समझ चुके थे |
- जय कुमार













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