दशहरा आ रहा है .. बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व .. बुराई एक नारी को अपमानित करने की | रामकथा में रावण अकेले सीता माता का अपराधी नही था | उनसे पहले वह वेदवती का अपराधी था जिनके सम्मान को उसने ठेस पहुँचायी थी | फिर वह अपनी ही बहन के पति का हत्यारा बना | और फिर एक दिन सूर्पनखा ने अपने झूठे मान-सम्मान की दुहाई देकर उसे श्री राम से युद्ध करने पर विवश किया | श्री राम से युद्ध की सूर्पनखा की जिद को स्वयं उसकी माँ ने भी कमज़ोर नही पड़ने दिया | देखा जाए तो रावण ने स्वयं को कभी श्रीराम से युद्ध करने में सक्षम माना ही नही | यदि ऐसा होता तो वो पंचवटी में ही श्रीराम के सामने आकर युद्ध करने का साहस दिखाता | लेकिन वो श्रीराम और माता जानकी के सामर्थ्यों से परिचित था | भूमिजा ने अपना हरण हो जाने दिया तो केवल वेदवती को न्याय दिलाने के लिए | नही तो महर्षि याज्ञवल्क्य जैसे महाज्ञानी के विद्यालय में शिक्षित गार्गी जैसी विदूषी शिक्षिका की शिष्या भला निर्बल हो सकती है क्या ? बहुधा हमारे मानस पटल पर सीता जी अबला वाली छवि उभरती है परन्तु यह सत्य नही है | भारी-भरकम शिव-धनुष को उठाने वाली राजकुमारी कोमलांगी नही अपितु बलिष्ठ कन्या ही हो सकती है | सम्पूर्ण रामकथा का सार निकाला जाए तो यही निष्कर्ष निकलता है कि जानकी मन और तन से बहुत दृढ और सबल थीं | भले ही यह लगता हो कि श्रीराम ने रावण को मारकर सीता जी की रक्षा की लेकिन वास्तविकता तो यह है कि पग-पग पर श्रीराम के मान-सम्मान की रक्षा स्वयं जानकी जी ने ही की थी | उनके वनगमन के पश्चात श्रीराम का आजीवन भूमि पर शयन करना और राजसभा से बाहर किसी भी प्रकार के सुख-सुविधा और वैभव को स्वीकार न करना, उनका सीता जी के लिए असीम प्रेम और आदर दर्शाता है | वस्तुत: लंका पर विजय श्रीराम की नही अपितु जानकी जी की थी |
दशहरा और दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ |
- जय कुमार