हिन्दी का बदलता स्वरुप

सृजन



समय गतिशील है | समय की गतिशीलता परिवर्तन को जन्म देती है | मानव के आसपास निरन्तर परिवर्तन हो रहे है | स्वयं मानव भी कहाँ बच पाया है परिवर्तन से ? इसी कारण से मानव की भाषा में भी परिवर्तन अवश्यम्भावी है |
हिन्दी विश्व की प्रमुख भाषाओँ में से एक है | बहुत से परिवर्तनों से गुजकर आने पश्चात् हिन्दी का वर्तमान स्वरुप हमारे सामने है | हिन्दी का मूल शब्दकोष संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओँ से उत्पन्न है | समय के साथ-साथ जब हिन्दी भाषी अन्य भाषा भाषियों के सम्पर्क में आये तो हिन्दी में अन्य भाषा के शब्दों का समावेश होता गया | एक तरह से इन शब्दों से हिन्दी शब्दकोष समृद्ध ही हुआ है | बहुत से ऐसे शब्द भी हैं जो परिवर्तन की दौड़ में पीछे छूट गए | हिन्दी में अब उनका प्रचलन लगभग समाप्त सा ही हो गया है |
केवल शब्दकोष ही नहीं हिन्दी के स्वरुप में भी परिवर्तन हुए है | बात कहने का लहजा बदला है | वाक्यों का विन्यास बदला है | शब्दों का चयन बदला है | शब्दों की वर्तनी तक अछूती नहीं रह पायी | ‘सम्बन्ध’ को ‘संबंध’ लिखा जाने लगा है | ‘ऋतु’ को ‘रितु’ बना दिया गया है | परिणाम स्वरुप उच्चारणों में बदलाव आया है | क्योंकि हिन्दी एक ऐसी भाषा है जिसमें जैसा लिखा जाता है वैसा ही बोला जाता है इसलिए शब्दों के पहले तो स्वरुप बदले, और बाद में स्वत: ही उनके उच्चारण भी बदल गए | ‘पम्प’ की वर्तनी को ‘पंप’ के रूप में मान्यता प्रदान की गयी है |
वर्तनियों के अतिरिक्त कुछ शब्दों के स्वरुप इस प्रकार से बदले हैं जैसे- शुद्धि और शुद्धि जैसे शब्दों में द् के बाद धि लिखा जाने लगा है | तर्क दिया जाता है कि इस प्रकार लिखे जाने पर ये शब्द अधिक बोधगम्य हैं | लेकिन अगर परम्पराओं को तोड़ते हुए, नवीनता की दुहाई देकर कुछ अर्द्धाक्षरों को इस प्रकार लिखना है तो फिर सभी अर्द्धाक्षरों पर ये बात लागू क्यों नहीं की जाती ? और क्या सभी अर्द्धाक्षरों पर ये बात लागू हो पाएगी  ? सच तो ये है कि सभी अर्द्धाक्षरों पर यह  लागू हो ही नहीं पायेगी | अगर  हठपूर्वक ऐसा किया भी जाये तो ये देवनागरी लिपि के लिए अच्छा संकेत नहीं होगा | क्योंकि इससे हिन्दी और देवनागरी अपने पारम्परिक और वास्तविक सौन्दर्य को खो देगी |


कुछ लोग बहाना बनाते हैं कि शब्दों का नया स्वरूप कम्प्यूटर पर हिन्दी  टाइप करने में सुविधा जनक है | उन लोगो से मै ये कहना चाहूँगा कि वो लोग इसे अपने समस्या ना माने ना ही ये उनकी व्यक्तिगत समस्या है , ना ही वो लोग इसे सार्वजनिक समस्या घोषित करने की चेष्टा करें | क्योंकि कम्प्यूटर पर हिन्दी टाइप करने की समस्या को कम्प्यूटर विशेषज्ञ बहुत पहले समझ चुके हैं और वो लोग इसका सटीक समाधान भी दे चुके है | आज हमारे पास ‘गूगल इनपुट मेथड’ जैसे ऐसे सरल सॉफ्टवेर हैं जिन्होंने  हिन्दी को टाइप करने अत्यधिक सरल बना दिया है और वो भी पारम्परिक सौन्दर्य को बनाए रखते हुए |

अत: मुझे लगता है कि हिन्दी के स्वरुप में जो परिवर्तन आवश्यक हैं वही किये जाने चाहिए अनावश्यक रूप से हिन्दी का रूप विकृत करने की ना तो कोशिश करनी चाहिए और न ही इसमे सहभागी बनना चाहिए |

-जयकुमार
 



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