माँ

सृजन
 आँचल में सिमटा संसार सारा ,
आँखों में ममता का सागर I
माँ की वाणी में आरती मंदिर की ,
  तेरे हर रुप में सारी सृष्टि समाई माँ |
कोशिश मैं भी यही करती ,
बन जाऊँ तेरी परछाई माँ |।
माथे पर चमकती पसीने की बूंदे,
कर्तव्यों के प्रति समर्पण हर पल I
सबके बोझ को कन्धे पर उठाती ,
चेहरे पर कभी शिकन न पाई माँ ।
तुझ जैसी बनूँ और आगे बढूँ,
बन जाऊँ तेरी परछाई माँ ।।
  सारा कुटम्ब एक डोर में बाँधती ,
सुख और दुख में सदा मुस्काती |
सबके लिए प्रेरणाप्रद व्याक्तित्व ,
तुझमें सागर की गहराई माँ |
अपने कुछ गुण मुझे भी दे दो ,
बन जाऊँ तेरी परछाई माँ |।
  रक्तकणों से आभिसिंचित करती ,
झरनों सा निर्मल वात्सल्य बिखेरती I
  हर दुख की तू ढाल बन जाती ,
धरा पर नहीं तेरे जैसा स्वरूप माँ |
  जीवन की कठिन पगडंडी पर,
बन जाऊँ तेरी परछाई माँ |।
-अलका शर्मा

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