योग भारतीय संस्कृति का एक आधार स्तम्भ है जो प्राचीन काल से आधुनिक काल तक हमारे साथ जुडा है। प्रिय पाठको योग एक ऐसी विद्या है जिसके द्वारा मन को अविद्या, अज्ञान आदि द्वेषो से बचकर वृत्तियो से रहित कर परमात्मा में लीन होने का ज्ञान प्राप्त होता है।
योग का उदभव अथवा आरम्भ सृष्टि के रूप मे वेदो के वर्णन में आता है। वेद वह ईश्वरीय ज्ञान है, जिसमें मानव जीवन के प्रत्येक पर प्रकाश डाला गया है। इस प्रकार योग के माध्यम से जीवन को सुखमय बनाते हुए जीवन के परम लक्ष्य मुक्ति के मार्ग को समझाया गया है।| प्राचीन ग्रन्थो में योग का बर्णन वेद, उपनिषद, हठप्रदीपिका, घेरण्डसंहिता व गीता आदि ग्रन्थो में मिलता है। स्पष्ठ है कि योग का वर्णन परमात्मा के श्रीमुख से हुआ जो आगे चलकर विकास क्रम में आगे बढा, इस विद्या का उद्देश्य प्राणी को दुख से मुक्त कर मुक्ति के मार्ग की ओर प्रशस्त करता है। भिन्न- भिन्न व्यक्ति अपनी क्षमता व रुचि के अनुसार अपना सकते है। अलग -अलग मार्ग होने पर भी सभी का एक ही उद्देश्य है, मोक्ष प्राप्ति जिस प्रकार नदियाँ भिन्न-भिन्न मार्गो से होते हुए अन्त में सागर में जाकर मिलती है। उसी प्रकार योग साधना का उद्देश्य भी आत्माओ का परमात्मा से मिलन ही है।
इसे क्रमबद्ध करते हुए महर्षि पतंजलि ने इसका वर्णन अष्टांग के द्वारा बताया है। जिसमे यम,नियम ,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा, ध्यान व समाधि है।
- योगाचार्य राजसिंह पुण्डीर