"आशामुझे माफ कर दो, यह सब मेरे पाप कर्मो का ही फल है जो मुझे यह दिन देखना पड रहा है। मै तुम्हें हमेशा अपाहिज कहकर पुकारती थी, मैं भी आज" कहते कहते माधुरी की आँखें छल छला आई। डॉक्टर आशा माधुरी को धैर्य बँधाकर अपने केबिन मे आ चुकी थी। माधुरी आशा की सहपाठी थी। माधुरी का पैर दुर्घटना में इतना खराब हो चुका था कि कि उसे काटने के सिवाय कोई रास्ता नहीं था। आशा बैठे बैठे दर्द से भरे अतीत में खो गई।उसे दादी माँ ने बताया था कि बचपन में ही पोलियो ग्रस्तहो गया था। कुदरत को सिर्फ इतना ही मंजूर नहीं था सर से माँ बाप का साया भी जल्दी ही छीन लिया।स्कूल जाना शुरू किया तो सहपाठियों ने अपंगता का खूब अहसास कराया।
मासूम आशा के पास आँसू के अलावा कुछ नहीं होता था। बच्चों को खेलते हुए देखकर नन्हेंहृदयमे कब हीनभावना घर कर गई और वह एकान्तप्रिय होती चली गयी।माधुरी तोउसे अपमानित करने का एक भी अवसर नहीं छोडती थी। कुशाग्र बुद्धि आशा आगे बढती चली गई कॉलिज मे नये प्रोफेसर आये थे उनके प्रश्नोंके उत्तर आशा केसिवाय कोई भी नहीं देसका । माधुरी का फिर वहीं कटाक्ष। आँखों में आँसू लिए आशा अपने पसंदीदा स्थान पर आकर बैठ गई। वृक्षों के पत्तों के बीच से झाँकते सूर्य को देखने लगी फूटतीं हुई किरणें नवचेतना का सँदेश दे रही थी।अपने पीछे आवाज़ सुनकर उसकी तन्मयता भंग हो गई।पलटकर देखा तो सामने प्रोफेसर खडे थे।"आँसू पोंछ दो ये सिर्फ तुमको कमजोर बनाएंगे।रात जितनी काली होती हैं सुबह उतनी ही सुहानी। दृढ़ निश्चय करके पथ पर आगे बढो और डॉक्टर बनने का अपना सपना पूरा करो।"प्रोफेसर की बातों ने उसकी हीनभावना को कहीं बहुत दूर कर दिया। तत्पश्चात आशा ने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा। आज डॉक्टर आशा शहर की बहुत बडी सर्जन थी। "क्या सोच रही हो आशा?"इस आवाज़ के साथ ही वह वर्तमान में लौट आई । सामने अपने पति डॉक्टर अश्विनी को देखकर मुस्कराई। प्रोफेसर के प्रतिश्रद्धासे नतमस्तक हो गई।
-अलका शर्मा स०अ०,
कन्या पूर्व मा0 वि0 भूरा